भोपाल। मध्य प्रदेश कांग्रेस को जल्द ही नए अध्यक्ष की सौगात मिल सकती है। मुख्यमंत्री कमलनाथ नए पीसीसी चीफ और कैबिनेट विस्तार को लेकर दिल्ली में हैं। वह कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात कर इस बारे में चर्चा करने पहंचे थे। ऐसा माना जा रहा है दिल्ली से लौटने के बाद प्रदेश में बड़े फेरबदल होंगे। झाबुआ विधानसभा उप चुनाव जीतने के बाद अब कांग्रेस पर प्रेशर पॉलिटिक्स कम हुई है। ऐसे में निर्दलीय विधायकों का मंत्रिमंडल में शामिल होने का ख्वाब अधूरा रह सकता है। सीएम मंगलवार को दिल्ली से लौट आएंगे।
दरअसल, विधानसभा चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस को बसपा और सपा विधायक का समर्थन मिलने के बाद सरकार बनी थी। अब सरकार को एक साल होने वाला है। इस एक साल में निर्दलीय और अन्य पार्टी के विधायकों द्वारा कमलनाथ सरकार पर जमकर दबाव बनाया गया। इसमें कई ने तो खुलकर मंत्री पद पाने की इच्छा जाहिर की थी। साथ ही समर्थन भी वास लेने के लिए कहा था। वहीं, कांग्रेस के भी कई वरिष्ठ विधायक मंत्री पद नहीं मिलने से खफा हैं। ऐसे में अब झाबुआ उप चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस पर दबाव कम हुआ है। कांग्रेस के पास अब 115 विधायकों की संख्या है। जबकि कांग्रेस से बागी होकर चुनाव लड़े प्रदीप जयसवाल निर्दील विधायक हैं लेकिन वह सरकार में खनिज मंत्री हैं। ऐसे में सरकार पूर्ण रुप से सत्ता में काबिज है। इस लिहाज़ से देखा जाए तो अब निर्दीलय विधायकों को मंत्री बनाए जाने का दबाव पार्टी पर कम हुआ है। वहीं, दूसरी ओर पीसीसी चीफ की कवायद एक बार फिर तेज़ हो गई है। कांतिलाल भूरिया के झाबुआ उप चुनाव जीतने के बाद उनका नाम मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने उछाल कर सियासत गरमा दी है। इससे पहले उन्होंने बाला बच्चन का नाम भी पीसीसी चीफ के लिए आगे बढ़ाया था।
सज्जन के बायन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमा एक बार फिर हैरान हो गया है। पार्टी द्वारा अगर आदिवासी कार्ड खेला जाता है तो फिर सिंधिया का पत्ता पीसीसी चीफ के पद से कट सकता है। हालांकि, बीते कई दिनों से सिंधिया प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में शामिल हैं। दिल्ली तक उनके नाराज़ होने और दूसरे विकल्प पर विचार करने तक की खबरें सामने आई थी। लेकिन सिंधिया ने खुद इस बारे में कोई बयान नहीं दिया। हालांकि, सिंधिया खेमे के मंत्री लगातार इस बात को उठाते आए हैं कि उन्हें प्रदेश की कमान सौंपी जाना चाहिए।