भोपाल। खान अशु।
तब उम्र का पड़ाव 31 वें पायदान पर रहा होगा, जब पहली बार अमेरिका में कलाम पेश करने का रुक्का हाथों में आया। शायरी का मजमा उस दौर तक इतना जम चुका था कि हिंदुस्तान भर में नाम और पहचान के साथ कुछ बेरुनी मुमालिक में कलाम की दाद मिल चुकी थी। लेकिन अमेरिका जाने के लिए महज 2-4 विदेश यात्राएं नाकाफ़ी ही मानी गई और बिना किसी लाग-लपेट अमेरिकी एम्बेसी ने सिरे से वीजा देने के लिए मना कर दिया। देश-दुनिया में शेर-ओ-कलाम के हवाले से खास पहचान रखने वाले शायर मंज़र भोपाली 22 अक्टूबर को अमेरिका में आयोजित मुशायरों की एक बड़ी श्रृंखला में शामिल होने के लिए रवाना हो रहे हैं। इस सफर की शुरुआत से पहले उन्होंने एक खास मुलाकात में अपने पिछले अमेरिकी सफर को लेकर कई रोचक बातें शेयर कीं।
मंज़र बताते हैं कि जब अमेरिका से मुशायरा पढ़ने का दावतनामा हाथ आया, उस दौर में पंजाब के हालात नाज़ुक थे और अमेरिका यात्रा के लिए वीजा मिल पाना कठिन प्रक्रिया हुआ करता था। मेरे लिए अमेरिका में पढ़ना किसी बड़े ख्वाब के पूरा होने से कतई कम नहीं था। दिल के इस अरमान के आगे हालात और नियम-प्रक्रिया बहुत छोटे नज़र आने लगे। तमन्नाओं को समेटे हुए दिल्ली दरबार जा पहुंचा और अमेरिकी दूतावास से अपनी ख्वाहिश बयान कर डाली। वही हुआ, जो होना तय बताया जा चुका था, अर्जी खारिज हो गई। हिम्मत बाकी थी, हसरत पूरी करने हर वह दरवाजा खटखटाया, जहां से मदद की थोड़ी सी भी गुंजाइश बनती थी। एक-एक दरवाजा दस्तक देते-देते कदम वहां तक जा पहुंचे, जहां से अल्लाह ने मदद होना नसीब में लिख रखा था। तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री मरहूम अर्जुन सिंह के सामने जब मेरी समस्या बयां हुई, तो पहले उन्होंने अपनेपन से भरी नाराज़गी दिखाई, फिर आश्वस्त किया कि तुम अमेरिका जाओगे और मुशायरा पढ़कर आओगे। कई मुश्किल हालात से गुजरने के बाद आखिरकार मुझे तीन महीने का अमेरिकी वीजा हासिल हो ही गया।
मंज़र कहते हैं कि शुरुआत की मुश्किलें आगे चलकर ये हालात भी बना देगी, जब अमेरिका अपने घर जैसा लगने लगेगा, ये सोचा भी नहीं था। वर्ष 1991 में शुरू हुआ अमेरिकी यात्रा का सिलसिला 2019 आने तक ढाई दर्जन के आंकड़े को पार कर चुका है। इस बीच तंजीमें, आयोजक, श्रोता बदलते रहे, लेकिन चाहने वाले न सिर्फ बरकरार, बल्कि हर बार पिछले से ज़्यादा ही होते रहे। मंज़र बताते हैं कि महज तीन माह के वीजा से हुई शुरुआत एक छह महीने से बढ़ोतरी करती हुई साल, दस साल तक पँहुचते हुए अनलिमिटेड सफर की सीढ़ी चढ़ चुकी है।
31 की उम्र में अमेरिका में पहला मुशायरा पढ़ने वाले मंज़र अपनी उम्र के 61वें पड़ाव पर आते-आते अपनी उम्र की आधी तादाद मुशायरे अमेरिकी मंचों पर पढ़ चुके हैं। वे सोमवार को संतरों के शहर नागपुर में अपना कलाम पढ़कर 22 अक्टूबर को दिल्ली से अमेरिका के लिए रवाना होंगे। करीब एक महीने के सफर के दौरान उनके हिस्से करीब दर्जन भर मुशायरे पढ़ने की दावत है। मंज़र कहते हैं कि अमेरिका पहुँचने के बाद कुछ कार्यक्रम ताबड़तोड़ और आनन फानन में भी तैयार हो जाते हैं। पिछले अनुभव याद करते हुए वे कहते हैं कि जब भी जाते हैं, पहले से तयशुदा आयोजन से कुछ ज्यादा मोहब्बतें हासिल कर ही अमेरिका से वापस लौटते हैं।