जन संघर्ष के नायक जब्बार भाई

कल ही सब पढ़ा था, मित्र लोग पोस्ट डाल रहे थे, एक आदमी जो 1984 से भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों की लड़ाई लड़ रहा था, लगातार 35 वर्षों से , उसने हर मंच पर आवाज़ बुलंद की आज वह अपनी ही लड़ाई हार गया यूँ तो अनिल सदगोपाल, साधना कर्णिक, सतीनाथ षड़ंगी, रचना ढींगरा आदि क़ई किस्म के नेता है जो यह लड़ाई लड़ रहे थे पर उनका अंदाजें बयाँ कुछ और था

1986 – 87 वो साल था जब देश भर से भारत ज्ञान विज्ञान जत्थे निकलें थे नारा लेकर कि विज्ञान विकास के लिए या विनाश के लिए , एकलव्य संस्था का गठन हुआ ही था विनोद रायना, रेक्स डी रोज़ारियो, कमल महेंद्रू, अनिता रामपाल, साधना सक्सेना, अनवर जाफरी जैसे लोग थे जो बहुत जोश और खरोश के साथ विज्ञान और विज्ञान की शिक्षा को लेकर प्रदेश में काम करने का मंसूबा लेकर आए थे , इस बीच भोपाल गैस त्रासदी हो गई – मप्र में  विनोद रायना, अनिल सदगोपाल, संतोष चौबे से लेकर तमाम तरह के एक्टिविस्ट और खास करके केरला शास्त्र साहित्य परिषद के डॉक्टर एम पी परमेश्वरन और कृष्ण कुमार जैसे लोगों ने भारत ज्ञान विज्ञान जत्थे की संकल्पना बनाई थी जो देश के चार कोनो से निकले थे चार जत्थे। ये जत्थे  देश भर की यात्रा करते हुए 1 दिसंबर 1987 को भोपाल पहुंचे थे और छोला रोड पर यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के सामने इकट्ठा हुए और हजारों लोगों की भीड़ के सामने नाटकों का प्रदर्शन हुआ और उपस्थित लोगों ने संकल्प लिया कि अब विज्ञान का प्रयोग विकास के संदर्भ में किया जाएगा  एकलव्य ने एक बहुत खूबसूरत किताब छापी थी जिसका शीर्षक था “भोपाल गैस त्रासदी – जन विज्ञान का सवाल ” , यह पुस्तक आज भी एकलव्य की नींव है  और एकलव्य जैसी प्रतिबद्ध संस्था एवं लोगों की विचारधारा का मूलाधार है जो हमें बार-बार जन वैज्ञानिकों और विचारधारा के संदर्भ में देखने की आवश्यकता महसूस कराती है


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