हैरानी की बात तो ये है कि पिछली बार जब यह आंदोलन किया गया था तो प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी और शिवराज मुख्यमंत्री थे, लेकिन इस बार कांग्रेस की सरकार है और कमलनाथ मुख्यमंत्री है।अब चुंकी यह आंदोलन चुनाव के बाद किया जाएगा तो नई सरकार को इस आंदोलन का सामना करना पड़ेगा।
महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवकुमार शर्मा ‘कक्काजी’ ने बताया कि हर साल पांच जून से आंदोलन किया जाता है लेकिन इस बार तारीख में बदलाव किया है। किसी भी राजनीतिक दल ने अपने घोषणा पत्र में लागत मूल्य देने की बात नहीं की है। भीख देने की प्रतिस्पर्धा चल रही है। कोई छह हजार रुपए सालाना देने की बात कर रहा है तो कोई 72 हजार रुपए साल बता रहा है। कक्काजी ने कहा कि विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने किसानों के 2 लाख रुपये कर्ज माफी की बात कही, लेकिन ऐसी बात किसी ने नहीं की कि किसान को कर्ज लेना ही न पड़े।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के समय दो लाख रुपए का कर्ज माफ करने की बात की पर ऐसी नीति पर किसी ने काम नहीं किया कि किसान कर्जदार ही न हो। दरअसल, भीख के बदले वोट का फॉर्मूला चल रहा है, जो ठीक नहीं है। एक से पांच जून तक के आंदोलन के केंद्र में गांव रहेंगे। गांव से फल, सब्जी, दूध और अनाज को वहीं रोकेंगे।
ये है प्रमुख मांगे
-किसानों को लागत का डेढ़ गुना मूल्य मिले।
-स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू किया जाए।
– फल, दूध और सब्जी का न्यूनतम समर्थन घोषित किया जाए।
-किसानों का दो लाख रुपए तक का कर्ज तो माफ किया जा रहा है पर एक बार पूर्ण कर्जमुक्ति हो। -मंडियों में खरीदी के पुख्ता इंतजाम हों। खेतों के आकार अब काफी छोटे हो गए हैं, इसलिए आय भी कम हो गई है। इसके मद्देनजर पेंशन शुरू की जाए।
-कांग्रेस ने एक हजार रुपए पेंशन देने का वचन घोषणा पत्र में दिया है।
-मंदसौर गोलीकांड के दोषियों के खिलाफ एफआईआर की जाए।
-किसानों के ऊपर दर्ज प्रकरणों को तत्काल वापस लिया जाए।