‘राजा’और ‘महाराजा’ के काम नहीं आई मंत्रियों की फौज

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भोपाल। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को हार का सामना करना पड़ा है। मप्र में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार से राजनीतिक क्षेत्र में चर्चा का दौर गर्माया हुआ है। मप्र में कांग्रेस के 29 प्रत्याशियों में से इन दोनों नेताओं के क्षेत्र में सबसे ज्यादा नेता चुनाव प्रचार में जुटे थे। सिंधिया के  लिए उनके समर्थकों के अलावा 7 मंत्री चुनाव प्रचार में जुटे थे। इसी तरह 5 मंत्री दिग्विजय के लिए वोट मांग रहे थे। खास बात यह है कि सिंधिया और दिग्विजय के लिए वोट मांगने वाले ज्यादातर मंत्री अपने क्षेत्र में हार गए। सिर्फ लाखन सिंह यादव और इमरती देवी ही अपने खुद के चुनाव क्षेत्र से पार्टी प्रत्याशी को जिता पाई हैं। 

कांग्रेस पार्टी ने मप्र की 29 लोकसभा सीटों पर प्रत्याशी घोषित करने के लिए मंत्री एवं विधायकों को प्रचार के लिए चुनाव मैदान में उतारा था। कमलनाथ सरकार के 28 मंत्रियों ने जमकर प्रचार किया। कमलनाथ सरकार में सिंधिया, दिग्विजय खेमे के विधायक ज्यादा संख्या में मंत्री हैं। लोकसभा चुनाव में इन मंत्रियों ने अपने-अपने खेमे के मुखिया के लिए ज्यादा समय दिया। जबकि पार्टी हाईकमान ने मंत्रियों को सभी प्रत्याशियों के चुनाव क्षेत्र में प्रचार के लिए जाने को कहा है। पहले चरण में जहां महाकौशल क्षेत्र की 6 लोकसभा सीट सीधी, शहडोल, जबलपुर, छिंदवाड़ा, बालाघाट और मंडला में चुनाव हुआ, उन सीटों पर मंत्रियों का प्रचार के लिए मूवमेंट अपेक्षाकृत कम रहा। ज्यादातर मंत्रियों का फोकस तीसरे चरण में होने वाले गुना एवं भोपाल लोकसभा सीट था। जहां गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया और भोपाल से दिग्विजय सिंह चुनाव मैदान में थे। 


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