घर के जोगी नहीं राहत, शहर ने रखा हमेशा सिर-आंखों पर

भोपाल। खान अशु।

आम धारणा है, होता भी यही आया है कि शायर, फनकार, कलाकार को अक्सर अपने शहर से वह मुहब्बत, प्यार, तवज्जो नहीं मिल पाती, जो दुनियाभर के श्रोताओं से नसीब होती है। घर का जोगी जोगड़ा… की कहावत के शिकार कई कलाकार, फनकार अपनी पहचान बनाने की मोहताजी में जिंदगी गुजार देते हैं। कहावत राहत इंदौरी के साथ जोड़कर देखी जाए, तो यहां नजारा कुछ उलट ही दिखाई देता है। अपने फन और कलाम से दुनिया में अपने मुरीद बना लेने वाले अंतर्राष्ट्रीय शायर डॉ. राहत इंदौरी को अपने शहर, सूबे और देश से भी वही सम्मान और मुहब्बत नसीब है, जो दुनियाभर के मंचों से उन्हें मिलती आई है। एजाज के शिखर पर पहुंच चुके डॉ. राहत के लिए एक खास मुकाम तब कहा जाता है, जब उनका अपना शहर उनकी मुहब्बत में निहाल हुआ दिखाई देता है।


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