भोपाल| मध्य प्रदेश में भाजपा की कमान किसे मिलेगी इसको लेकर जहां संगठन स्तर पर तैयारियां तेज हो गई है। वहीं दावेदारों में भी हलचल है। इस बीच बीजेपी के सबसे लोकप्रिय चेहरा माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सक्रियता सबको चौंका रही है| हालांकि उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ से खुद को बाहर बताया है, पिछले दिनों उन्होंने कहा था कि वह क्यों बनेंगे प्रदेश अध्यक्ष । लेकिन जिस तरह हर एक मामले को लेकर सरकार के खिलाफ शिवराज जमीन पर लड़ाई लड़ते नजर आ रहे हैं इससे सियासी गलियारों में कई तरह की चर्चाएं गर्म हैं।
सत्ता जाने के बाद सभी के मन में एक ही सवाल था कि शिवराज की अब क्या भूमिका होगी, उन्हें राष्ट्रीय नेतृत्व में जिम्मेदारी भी मिली| लेकिन उन्होंने अपनी जमीन नहीं छोड़ी और प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष की जगह शिवराज हर आंदोलन को लीड करते नजर आये| एक तरह शिवराज विपक्ष के नेता के रूप में सामने रहे हैं| इस बीच प्रदेश अध्यक्ष को लेकर चर्चा शुरू हुई तो उनकी सक्रियता सबको चौंका रही है|
पिछले एक सप्ताह में पूर्व सीएम ने सागर में यूरिया संकट पर किसानों के साथ गिरफ्तारी दी तो भोपाल में एक दुष्कर्म पीड़ित बच्ची की हत्या के मामले में न्याय की लड़ाई लड़ने धरने पर बैठ गए। रायशुमारी से पहले ऐसा माहौल तैयार किया जा रहा है कि विपक्ष में होने के कारण प्रदेश में अब फायर ब्रांड अध्यक्ष चाहिए।
शिवराज सिंह चौहान खुदको प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ से बाहर बता चुके हैं| लेकिन चर्चा यह भी है उन्होंने अपनी और से किसी और नेता का नाम आगे बढ़ाया है| अन्य दिग्गज नेता भी इस दौड़ में शामिल है| इसके अलावा वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह भी मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं| लेकिन जातिगत समीकरणों को साधने के लिए पार्टी अब ओबीसी दांव खेल सकती है| जिसके चलते शिवराज ही बड़ा चेहरा है| प्रदेश अध्यक्ष की इस दौड़ के चलते बीजेपी की अंदरूनी कलह सतह पर आ गई है| विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी ने तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान को हटाकर जबलपुर सांसद राकेश सिंह के हाथों में पार्टी की कमान सौंपी थी। तब चौहान का कार्यकाल नौ महीने का बाकी था। बताया चाहता है कि शिवराज सिंह चौहान प्रदेशाध्यक्ष के पद पर चुनाव तक बदलाव नहीं चाहते थे, लेकिन पार्टी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और संगठन के नेताओं के परामर्श से राकेश सिंह को प्रदेश की कमान सौंपी, जो दौड़ में भी नहीं थे। विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद से ही भाजपा में बिखराव देखने मिल रहा है। कई मौके पर शिवराज को संगठन का साथ नहीं मिल रहा है, वे धरना प्रदर्शन आंदोलन में अकेले नजर आ रहे हैं| ऐसी स्तिथि में प्रदेश अध्यक्ष को लेकर फैसला हाई कमान की इच्छा से ही होना तय माना जा रहा है| वहीं संघ भी इस मामले में हस्तक्षेप कर सहमति बना सकता है|