ग्वालियर। लोकसभा चुनाव के बाद से महापौर पद की नियुक्ति को लेकर चल अटकलों पर अब विराम लग गया है । सरकार ने एक याचिका के जवाब में हाईकोर्ट में जवाब पेश किया कि ग्वालियर में महापौर की नियुक्ति नहीं होगी। इसी के साथ उन कांग्रेस पार्षदों के अरमान ठंडे पड़ गए जो खाली पड़ी इस कुर्सी पर बैठने का सपना देख रहे थे।
दरअसल ग्वालियर के महापौर विवेक नारायण शेजवलकर के ग्वालियर सांसद निर्वाचित जाने के बाद उन्होंने 5 जून को महापौर पद से इस्तीफा दे दिया था जिसे शासन ने स्वीकार नहीं किया। क्योंकि नगर निगम विधान के अनुसार यदि नगरीय निकाय चुनावों में 6 महीने से अधिक का समय बचता है तो महापौर के लिए चुनाव कराना पड़ता। इसलिए शासन ने 1 महीने 11 दिन बाद 17 जुलाई को महापौर पद से श्री शेजवलकर का इस्तीफा स्वीकार कर लिया। इस्तीफा स्वीकार होने के बाद से कांग्रेस ने पार्षदों की नजर महापौर की खाली पड़ी कुर्सी पर टिक गई। सबसे ऊपर नाम नेता प्रतिपक्ष एवं वरिष्ठ पार्षद कृष्ण राव दीक्षित का चला फिर उप नेता प्रतिपक्ष चतुर्भुज धनेलिया का नाम सामने आया। उसके बाद पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस पार्षद विकास जैन का नाम भी चर्चा में चल रहा था। अलग अलग गुट के ये नेता अपने वरिष्ठ नेता से जुगाड़ लगा रहे थे । इस बीच मामला हाईकोर्ट में पहुंच गया। एडवोकेट एस के शर्मा ने एक जर्जर सड़क के निर्माण को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की । जवाब में नगर निगम ने महापौर नहीं होने से निर्माण नहीं किये जाने की परेशानी बताई उसके बाद हाईकोर्ट ने शासन से नियुक्ति को लेकर जवाब तलब किया। शासन की ओर से नगरीय विकास एवं आवास विभाग के प्रमुख सचिव संजय दुबे ने हाईकोर्ट में शपथ पत्र पर जवाब पेश किया कि नगर निगम विधान के अनुसार महापौर की नियुक्ति करना या ना करना सरकार की इच्छा पर निर्भर करता है । सरकार ग्वालियर में रिक्त हुए इस पद को भरना नहीं चाहती इसलिए यहाँ महापौर की नियुक्ति नहीं होगी। ये जवाब ग्वालियर बेंच में जस्टिस जीएस अहलुवालिया के सामने पेश किया गया। मामले में शुक्रवार को सुनवाई नहीं हो सकी। एडवोकेट एस के शर्मा के मुताबिक अब अगले सप्ताह सुनवाई होगी।
प्रशासक की नियुक्ति का रास्ता साफ़
दरअसल महापौर का इस्तीफा स्वीकार करने में सरकार की तरफ से हो रही देरी इस बात की तरफ ही इशारा कर रही थी की शासन यहाँ महापौर नहीं प्रशासक नियुक्त करना चाहती है लेकिन नेताओं के बयानों और मीडिया की ख़बरों ने कांग्रेस के पार्षदों की उम्मीदों को जिंदा रखा। इस बीच भाजपा ने भी कुर्सी पर बैठने के लिए अपनी ताल ठोंकी थी। उधर नियमानुसार सरकार 10 जनवरी तक प्रशासक की नियुक्ति नहीं कर सकती । इसलिए फ़िलहाल ये पद खाली ही रहेगा। महापौर का पद खाली होने का असर ये हो रहा है कि शहर विकास के बहुत से काम रुके हुए हैं। नगर निगम परिषद् के सचिव विकास से जुड़े पत्रों को महापौर का पद रिक्त है की टीप लगाकर लौटा देते हैं। यदि शहर का विकास ऐसे ही थमा रहा तो प्रदेश में काबिज कांग्रेस और ग्वालियर नगर निगम में काबिज भाजपा दोनों को ही नुकसान उठाना पड़ेगा।