ग्वालियर। पिछले कुछ वर्षों में क्वालिटी एजुकेशन की जगह अपनी कारगुजारियों की वजह से जीवाजी विश्वविद्यालय चर्चा में रहा है। इस बार मामला नियम विरुद्ध पीएचडी कराये जाने से जुड़ा है। हाईकोर्ट द्वारा गठित न्यायिक आयोग की जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि जेयू ने नियमों को ताक पर रखते हुए 23 लोगों को पीएचडी की डिग्रियां बांटी हैं।
जीवाजी विश्वविद्यालय में पीएचडी में गड़बड़ियों को लेकर ललित कुमार खरे की जनहित याचिका पर एक न्यायिक आयोग का गठन किया गया था। जिसमें इस मामले की जांच का जिम्मा सेवानिवृत न्यायाधीश डीके पालीवाल को सौंपा गया था। न्यायिक आयोग ने मामले की जांच कर न्यायमूर्ति संजय यादव और न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की युगलपीठ को बीती 2 जुलाई को अपनी रिपोर्ट बंद लिफाफे में प्रस्तुत कर दी। न्यायालय ने इस रिपोर्ट को सभी पक्षकारों को सौंपे जाने के आदेश दिए थे।
जानकारी के अनुसार आयोग की रिपोर्ट में आदिम जाति कल्याण विभाग के एडिशनल डायरेक्टर सुरेन्द्र सिंह भंडारी की पीएचडी पर भी सवाल उठाये हैं। जांच में भंडारी का शोध पत्र ही प्रमाणित नहीं पाया । इसके आलावा भंडारी का माइग्रेशन सर्टिफिकेट भी प्रमाणित नहीं मिला। ये सर्टिफिकेट जामिया मिलिया विवि द्वारा 8 अक्टूबर 2008 को जारी किया गया था इतना ही नहीं भंडारी का पीएचडी के लिए नामांकन,200 दिन की उपस्थिति भी प्रमाणित नहीं पायी । न्यायिक आयोग ने जीवाजी विवि के आर्डिनेंस के आधार पर जांच की। जिसमें रिसर्च सेंटर पर 200 दिन की अनिवार्य उपस्थिति, शोधार्थी की नामांकन प्रक्रिया, स्नातकोत्तर में 55 प्रतिशत अंक हैं कि नहीं । जांच के दौरान आयोग ने इन बिन्दुओं को पूरा नहीं करने वाले पीएचडी डिग्री धारकों को बुलाकर उनका पक्ष भी सुना।
इन्हें दी गई PHD की डिग्री
सुरेन्द्र सिंह भंडारी, फाजिल किदवई, अंकित कुमार उपाध्याय, फैयाज अहमद वानी, रामकुमार गौतम, रुचि कश्यप, श्वेता त्रिपाठी, कृतिका शुक्ल, प्रमेन्द्र सिंह, रामकुमार शर्मा, प्रभाकर शर्मा, वैभव शर्मा, कृष्णकांत उपाध्याय, शशिवेंद्र सिंह, पारुल कुलश्रेष्ठ, छवि उथारा, नवीन शर्मा, निसार अहमद, रफत फारुख, अभिषेक मिश्रा, स्वाति श्रीवास्तव, रुचि बुंदेला और सुप्रिया श्रीवास्तव।