भोपाल/ग्वालियर।
ग्वालियर से नवनिर्वाचित सांसद विवेक नारायण शेजवलकर ने महापौर पद से इस्तीफा दे दिया है।जिसके बाद महापौर की कुर्सी खाली हो गई है। कयास लगाए जा रहे है कि इस्तीफे के बाद राज्य सरकार किसी भी वरिष्ठ पार्षद को मेयर की कुर्सी पर बैठा सकती है। इसमें कांग्रेस के चांस सबसे ज़्यादा हैं। चूंकि नगर निगम के चुनाव में नवम्बर होने हैं। ऐसी स्थिति में राज्य सरकार निगम के 66 में से किसी एक पार्षद को चुनाव होने तक महापौर मनोनीत कर सकती है। इसको लेकर ग्वालियर नगर निगम की सियासत में हलचल तेज हो चली है।कांग्रेस की निगाहें पूरी तरह से अब इस कुर्सी पर आ टिकी है। कांग्रेस की पूरी कोशिश रहेगी की यह पद उनके हक में आ जाए।
नगर पालिका अधिनियम 1956 की धारा 21(1) के तहत जैसे ही महापौर का पद या किसी निर्वाचित पार्षद का स्थान रिक्त हो जाता है या रिक्त घोषित कर दिया जाता है, तो राज्य सरकार ऐसे रिक्ति को भरने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग को तत्काल सूचित करती है। इस प्रकार निर्वाचित व्यक्ति यथा स्थिति महापौर या पार्षद का पद निगम की केवल शेष कालावधि के लिए धारण करेगा। परन्तु यदि किसी नगर पालिका निगम की शेष कालावधि 6 माह से कम है तो ऐसी रिक्ति नहीं भरी जाएगी, तब तक महापौर की समस्त शक्तियां तथा कर्तव्य ऐसे निर्वाचित पार्षद द्वारा पालन किए जाएंगे जैसा कि राज्य सरकार इस निमित्त नाम निर्दिस्ट करे।ऐसे में शेजवलकर के इस्तीफे के साथ ही कांग्रेस की निगाहें कुर्सी पर आ टिकी है। चुंकी निगम चुनाव इसी साल नवंबर में होना हैं। समय 6 माह से कम बचा है। इसलिए महापौर पद के लिए चुनाव नहीं कराया जा सकेगा।ऐसे में राज्य सरकार निगम के 66 में से किसी एक पार्षद को चुनाव होने तक महापौर मनोनीत कर सकती है। कांग्रेस की पूरी कोशिश रहेगी कि मेयर का पद उनके हिस्से में आए ।
दरअसल, विवेक शेजवलकर का महापौर पद पर यह दूसरा कार्यकाल था। इससे पहले वो 2005 से 2009 तक इस पद पर रहे थे।उनके पद से इस्तीफे देने के बाद से ही माना जा रहा है कि सरकार नेता प्रतिपक्ष कृष्णराव दीक्षित को इस पद पर मनोनीत कर सकती है।क्योंकि निगम की 1956 धारा 21/2 के तहत राज्य सरकार को आधिकार होता है, कि कम समय में निगम के ही किसी पार्षद को मेयर की कुर्सी पर बैठा दें। इसको लेकर ग्वालियर नगर निगम की सियासत में हलचल तेज हो चली है।हालांकि विपक्ष तो भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर पहले से ही महापौर के इस्तीफे की मांग कर रहा था, वही सरकार ने भी पद से हटाने के साथ-साथ उन्हें कई मामलों में नोटिस भी दिए हुए है , ऐसे में कयास लगाए जा रहे है कि कांग्रेस मौके का फायदा उठाकर यह पद अपने हिस्से में कर लेगी और निकाय चुनाव से पहले अपने आप को मजबूत करेगी। अब देखना दिलचस्प होगा कि मेयर की कुर्सी पर कौन राज करता है।