भोपाल/मंदसौर। अल्तमश जलाल।
मध्य प्रदेश में आम चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दल तैयारियों में जुट गए हैं। प्रदेश के पश्चिम छोर पर बसे मंदसौर और नीमच संसदीय क्षेत्र में इस बार मुकाबला दिसचस्प होगा। यह क्षेत्र भाजपा के गठन से पहले संघ का गढ़ माना जाता है। जब एमपी अस्तित्व में नहीं आया था तब इस क्षेत्र से पहले लोकसभा चुनाव में कैलाश नाथ काटजू को चुना गया था। उस दौर में जब कांग्रेस प्रदेश के अन्य इलाकों में जीत का परचम फेहरा रही थी तब भी यहां जन संघ का जोर हुआ करता था। 57 के चुनाव के बाद कांग्रेस के मनक लाल यहां से जीते थे। उनके बाद लगातार भारतीय जन संघ ने 62 , 67 और 71 का चुनाव जीता।
80 दशक के बाद से लगातार मंदसौर से बीजेपी के उम्मीदवार ही संसद की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं। यह इलाका ओपीयम के उत्पादन के लिए भी जाना जाता है। यहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कई दशकों से दबदबा है जिसके चलते बीजेपी उम्मीदवार को यहां से आसानी से जीत मिल जाती है। आरएसएस और बीजेपी का ताकत इस बात से समझी जा सकती है कि मंदसौर गोलीकांड होने का बाद भी यहां से विधानसभा चुनाव में बीजेपी को ठीकठाक सीटें मिल गई। मंदसौर लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा सीट आती हैं सिवाए सुसवारा के बीजेपी ने सभी पर जीत हासिल की है। ये स्थानीय लोगों के लिए भी चौंकाने वाली बात है। किसानों में भारी नाराजगी को देखते हुए कयास लगाए जा रहे थे कि इस बार यहां से बीजेपी का सूपड़ा साफ हो जाएगा। लेकिन जब परिणाण आए तो सब हैरान थे। लेकिन बीजेपी आठ में से सात विधानसभा सीटों को बचाने में कामयाब रही।
हालांकि, पार्टी के लिए चिंता का विषय यह है कि यहां उसका वोट प्रतिशत कम हुआ है। विधानसभा चुनाव में कुछ सीटें बहुत कम अंतर से बीजेपी जीती है। जैसे जौरा सीट बीजेपी महज 511 वोट से जीती है। 2009 में कांग्रेस की मीनाक्षी नटराजन ने बीजेपी के इस दुर्ग में सेंध लगाई थी। वह मंदसौर लोकसभा सीट से जीती थीं। उन्होंने बीजेपी के वरिष्ठ नेता लक्ष्मीनारायण पांडेय को हराया था वह पिछले आठ बार से यह सीट जीत रहे थे। कांग्रेस के लिए यह बहुत बड़ी जीत थी। लेकिन 2014 में मोदी लहर में नटराजन को बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा। बीजेपी के सुधीर गुप्ता को तीन लाख वोटों से जीत मिली थी। नटराजन से पहले बीजेपी ने लगातार पांच बार इस सीट पर जीत हासिल की। बीजेपी के लक्ष्मीनारायण पांडे ने कांग्रेस के राजेंद्र सिंह गोतम को 2004 और 1999 के चुनाव में हराया था। यही नहीं पाडें 1998, 1996, 1991 और 1989
में भी यहां से जीते थे। इससे पहले वह जन संघ के टिकट पर 1971 और बाद में लोक दल के उम्मीदवार के तौर पर 1977 में जीते थे। लेकिन 84 में कांग्रेस के बालकवि बैरागी ने पार्टी को जीत दिलाई थी। फर उसके बाद नटराज को 25 साल बाद जीत मिली थी। बीजेपी के लिए यह सीट जीतने मुश्किल नहीं है लेकिन इस बार पार्टी को कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। बीजेपी अपनी जीत के लिए सुनिश्चित है लेकिन सांसद सुधीर गुप्ता के खिलाफ जनता में असंतोष है। जिसे देखते हुए गुप्ता काफी सक्रिये नजर आ रहे हैं लेकिन इस सीट पर बीजेपी के पास कई और भी दावेदार हैं।
ग्रामीण इलाकों में गुस्सा है और काले झंडे तब लहराए गए जब गुप्ता हाल ही में निर्वाचन क्षेत्र के दौरे पर थे। पार्टी के पदाधिकारियों ने उन्हें जनता का आक्रोश देखते हुए छोड़ना के लिए तक कहा था। विरोध प्रदर्शन में उनके पुतले को भी फूंका गया। लोगों की यह आम शिकायत है कि गांवों में ज्यादा विकास नहीं हुआ है। पार्टी के कुछ बड़े नेताओं की भी नजरें इस सीट पर हैं।