सत्कर्म में किसी का इंतजार नही करना चाहिए – पं. नरेन्द्र नागर

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आष्टा। अपने सुख त्यागकर बच्चों को सुख दे, उनकी योग्यता पर ध्यान दे। उनको उनकी आदते सुधारे। एक दिन वो ही राम-कृष्ण बनेंगे। अपना नियम बनाये। संसार का सबसे बड़ा गुरु भगवान श्री कृष्ण है।आज कथा के तीसरे दिन भागवताचार्य नरेन्द्र नागर जी ने बताया कि राजा दक्ष की 16 कन्याओं में से एक कन्या का विवाह भगवान शंकर के साथ, एक कन्या स्वाहा का विवाह अग्नि देव के साथ ,सुधा नामक एक कन्या का विवाह पितृगण साथ के साथ और शेष 13 कन्याओं का धर्म के साथ विवाह हुआ। धर्म की पत्नियों के नाम श्रद्धा, मैत्री, दया, शांति, तुष्टि, पुष्टि, क्रिया, उन्नति, बुद्धि, मेधा और मूर्ति थे।एकबार दक्ष प्रजापति ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था जिसमें द्वेषवश उन्होंने अपने जामाता भगवान शंकर अपनी पुत्री सती को निमंत्रित नहीं किया शंकर जी के  सब प्रकार से समझाने के बाद भी सती अपने पिता के यज्ञ में बिना बुलावे चली गई , वहां पर सभी ने उनको व्यंग पूर्वक देखा सभी बहनों ने मुख मोड़ लिया ,मां से मिली तो मां ने समझाया कि बेटा तुम यहां से चली जाओ यहां तुम्हारे पिता ने  तुम्हारे पति का अपमान करने के लिए कई ऋषि-मुनियों को बुलाया है, किंतु सती भगवान शंकर के समझाने के बाद भी यज्ञ में आई थी तो वहां जाना कठीनन लग रहा था , सती राजा दक्ष के समक्ष अपने पति को आमंत्रित नहीं करने एवं अपमान करने का कारण पूछती हैं कि महाराज मेरे भगवान शंकर जिन्होंने विष पीकर अमृत बांट दिया लंका देकर स्वय केलाश पर रहते हैं, ऐसे त्यागी को यज्ञ में आसन ,निमंत्रण क्यो नहीं दिया यह अपमान क्यों किया, सती भगवान शंकर के अपमान से क्रोधित होकर प्रचंड अग्नि को आह्वान करती हैं और अपने आप को यज्ञ अग्नि में आहुति कर देती है। कथा में घनश्याम जांगड़ा, मनोज नागर, एलकार मेवाड़ा, पवन पंड्या, राकेश नायक, दीपक परमार, महेन्द्र गेहलोत, जयंत नायक, जगदीश नामदेव सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन मौजूद थे।  


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