प्रदेश की कमलनाथ सरकार अब केन्द्र की मोदी सरकार की राह पर चल पड़ी है। कमलनाथ सरकार अब मोदी सरकार की तर्ज पर पुराने और बेकार हो चुके 250 से ज्यादा कानूनों को खत्म करने जा रही है। इसके लिए राज्य विधि आयोग को प्रस्ताव तैयार कर रहा है। आयोग अब तक करीब आठ सौ कानूनों का अध्ययन कर चुका है। इनमें से दो सौ से ज्यादा कानून अनुपयोगी पाए गए हैं।इनमें कुछ कानून सीमित अवधि के लिए थे, जिनकी अवधि समाप्त हो चुकी है, तो ज्यादातर वर्तमान परिस्थिति में अप्रभावी हो गए हैं।
खबर है कि यह आंकड़ा 250 या उससे ज्यादा भी हो सकता है। इसलिए आयोग इन्हें रद्द करने की सिफारिश का ड्राफ्ट तैयार कर रहा है, जो अगले एक माह में राज्य सरकार को सौंपा जा सकता है।इसके बाद सरकार इन कानूनों को रद्द करने का फैसला लेगी। बता दे कि इससे पहले केंद्र सरकार ऐसा कर चुकी है।अभी तक मोदी सरकार 1400 से ज्यादा कानून खत्म कर चुकी है। आगे 58 और कानून खत्म करने की तैयारी है।
इन कानून को खत्म करने की तैयारी
– ‘द मप्र एग्रीकल्चरिस्ट लोन एक्ट 1984″ कानून को नार्दन इंडिया तकावी एक्ट 1879 के नियमों में संशोधन के लिए लाया गया था। इसमें लोन राशि की वसूली का अधिकार सरकार को दिया था। वर्तमान में राष्ट्रीकृत और सहकारी बैंकें लोन देती हैं और वही वसूली करती हैं इसलिए कानून अप्रभावी हो गया।
– ‘द भोपाल गैस त्रासदी (जंगिन संपत्ति के विक्रयों को शून्य घोषित करना) अधिनियम 1985″ गैस त्रासदी के डर से भोपाल से भागने वालों की संपत्ति बचाने के लिए यह कानून सीमित अवधि के लिए लाया गया था। इसमें तीन से 24 दिसंबर 1984 के मध्य बिकी संपत्ति के विक्रय को शून्य करने का प्रावधान था। इसकी अवधि 1984 में ही समाप्त हो गई है।
– ‘मप्र कैटल डिसीजेज एक्ट 1934″ और ‘मप्र हॉर्स डिसीजेज एक्ट 1960″ दोनों कानूनों को पालतु पशुओं की सुरक्षा के लिए बनाया गया था। इसमें पशुओं की बीमारी और संक्रमण से सुरक्षा का प्रावधान था। वर्ष 2009 में केंद्र सरकार ने इसके लिए नया कानून बना दिया है, जो दोनों कानूनों से व्यापक है इसलिए यह कानून भी अनुपयोगी हो गया है।
– ‘मप्र ग्रामीण ऋ ण विमुक्ति अधिनियम 1982″ यह कानून भूमिहीन कृषि मजदूरों, ग्रामीण मजदूरों और छोटे किसानों को 10 अगस्त 1982 से पहले के समस्त ऋ णों से मुक्त कराने बनाया गया था। इस अधिनियम की धारा-3 में यह प्रावधान था कि ऋ ण न चुकाने वाले किसी भी संबंधित के खिलाफ न तो अदालत में मामला दर्ज होगा और न ही रिकवरी के अन्य उपाय किए जाएंगे। इस अवधि से पहले के सभी मामले खत्म हो चुके हैं इसलिए यह कानून भी प्रभावी नहीं बचा है।
इधर केन्द्र सरकार खत्म करने वाली है ये कानून
लेखापाल चूक अधिनियम 1850, रेल यात्री सीमा कर अधिनियम 1892, हिमाचल प्रदेश विधानसभा गठन और कार्यवाहियां विधिमान्यकरण अधिनियम 1958, हिन्दी साहित्य सम्मेलन संशोधन अधिनियम 1960 शामिल है । इनमें एलकाक एशडाउन कंपनी लिमिटेड उपक्रमों का अर्जन अधिनियम 1964, दिल्ली विश्वविद्यालय संशोधन अधिनियम 2002 भी शामिल है । इनमें धनशोधन निवारण संशोधन अधिनियम 2009, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल संशोधन अधिनियम 2009, नागरिक सुरक्षा संशोधन अधिनियम 2011, प्रौद्योगिकी संस्थान संशोधन अधिनियम 2012, वाणिज्यिक पोत परिवहन दूसरा संशोधन अधिनियम 2014, बीमा विधि संशोधन अधिनियम 2015, निर्वाचन विधि संशोधन अधिनियम 2016 शामिल हैं।