VIPRIT RAJYOG 2025 : ज्योतिष शास्त्र में शनि को अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली ग्रह माना गया है। शनि न्याय व दंड के कारक माने जाते है। शनि एक से दूसरी राशि में जाने के लिए करीब ढाई वर्ष का समय लेते है, ऐसे में एक राशि में दोबारा पहुंचने में करीब 30 साल लग जाते है। शनि मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं। तुला राशि में वे उच्च और मेष में नीच के होते है। वर्तमान में शनि मीन राशि में मार्गी अवस्था में है और जून 2027 तक इसी राशि में रहने वाले हैं। शनि मीन राशि में रहकर सिंह राशि (जब शनि सिंह राशि के छठे भाव के स्वामी होते हुए मीन राशि के आठवें भाव में गोचर कर रहे हैं) में एक शक्तिशाली विपरीत राजयोग का निर्माण कर रहे है, जो 3 राशियों के लिए फलदायी साबित हो सकता है।
विपरित राजयोग 3 राशियों के लिए लकी
मीन राशि पर प्रभाव: विपरित राजयोग जातकों के लिए अनुकूल सिद्ध हो सकता है।इस राशि में शनि लग्न भाव में विराजमान रहेंगे। किस्मत का पूरा साथ मिल सकता है। आत्मविश्वास में वृद्धि होगी।करियर के क्षेत्र में नई संभावनाएं बन सकती है। नौकरीपेशा को पदोन्नति के साथ-साथ वेतन में वृद्धि का लाभ मिल सकता है। लंबे समय से अटके व रूके हुए काम पूरे हो सकते हैं। कारोबारियों के लिए समय उत्तम रहेगा। निवेशों से अच्छा लाभ मिल सकता है। परिवार के साथ अच्छा वक्त बीत सकता है।स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।
सिंह राशि पर प्रभाव: विपरीत राजयोग जातकों के लिए फलदायी साबित हो सकता है।सिंह राशि की गोचर कुंडली में शनि छठे और सातवें भाव के स्वामी हैं, और आठवें भाव में संचरण करेंगे।करियर और व्यवसाय में लाभ मिल सकता है। समाज में मान सम्मान बढ़ेगा। हर क्षेत्र में उन्नति और प्रगति देखने को मिल सकता है। नौकरीपेशा को प्रमोशन के साथ वेतनवृद्धि का लाभ मिल सकता है। आय में वृद्धि हो सकती है। आर्थिक लाभ के साथ संतान सुख की प्राप्ति हो सकती है । लंबे समय से चल रहे संघर्षों और बाधाओं से मुक्ति मिल सकती है।
तुला राशि पर प्रभाव:विपरीत राजयोग जातकों के लिए सकारात्मक परिणाम लेकर आ सकता है।शनि का छठे भाव में इस राजयोग का निर्माण हो रहा है। आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।मेहनत का फल मिलेगा।कई क्षेत्रों में सफलता मिल सकती है।जीवन में खुशियों का संचार होगा। नौकरीपेशा को नए अवसर मिल सकते है। लंबे समय से बीमारी या समस्या से जूझ रहे है तो निदान हो सकता है।
कुंडली में कब बनता है विपरित राजयोग
- वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, विपरीत राजयोग ज्योतिष में एक विशेष प्रकार का योग है जो कुंडली के छठे, आठवें और बारहवें भाव के स्वामियों के बीच बनता है। यह योग आमतौर पर अशुभ माने जाने वाले भावों (6वें, 8वें और 12वें) के स्वामियों के एक साथ आने से बनता है।
- विपरीत राजयोग का निर्माण होने से व्यक्ति को धन लाभ के साथ वाहन, संपत्ति का सुख प्राप्त होता है।इस योग में त्रिक भावों और उनके स्वामियों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। वैसे त्रिक भावों को ज्योतिष शास्त्र में शुभ नहीं माना जाता लेकिन कुछ विशेष परिस्थियों के कारण यह शुभ फल देने लगते हैं, वहीं मुख्यत: त्रिक भावों में से किसी भाव का स्वामी किसी अन्य त्रिक भाव में विराजमान हो तो इस योग का निर्माण होता है।
(Disclaimer : यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों और जानकारियों पर आधारित है, MP BREAKING NEWS किसी भी तरह की मान्यता-जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है।इसके सही और सिद्ध होने की प्रामाणिकता नहीं दे सकते हैं। इन पर अमल लाने से पहले अपने ज्योतिषाचार्य या पंडित से संपर्क करें)





