भोपाल/नई दिल्ली।
ओम्कारेश्वर बांध को लेकर नर्मदा आन्दोलन को बड़ी जीत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने ओंकारेश्वर बांध विस्थापितों के संबंध में बड़ी राहत दी है।कोर्ट ने नर्मदा बचाओ आन्दोलन की याचिका पर एक महत्वपूर्ण आदेश दिया है। कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिए है कि वह 3 महीने के अन्दर विस्थापितों को पुनर्वास के लिए खेती योग्य जमीन उपलब्ध कराये। यदि विस्थापित मुआवजा व विशेष पैकेज का विकल्प लेता है तो सरकार को मुआवजे व पैकेज पर अतिरिक्त 90% ब्याज देना होगा। इस मामले मे मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई , न्यायाधीश दीपक गुप्ता और संजीव खन्ना की पीठ ने सुनवाई की और आदेश दिए। वही नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है और सरकार से मांग की है कि जमीन के साथ पुनर्वास की अन्य सभी मागों को तत्काल पूरा किया जाये। इन सभी मांगों के साथ विस्थापित सैकड़ों की संख्या में 28 मार्च को राजधानी भोपाल में प्रदर्शन करेंगे।
ये है पूरा मामला
खंडवा में एक पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए नर्मदा आन्दोलन के वरिष्ठ कार्यकर्त्ता व आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष आलोक अग्रवाल ने बताया कि ओम्कारेश्वर बांध विस्थापित गत 12 साल से नर्मदा बचाओ आन्दोलन के तहत अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं। इस लड़ाई में उन्होंने अपने अधिकारों के लिये तमाम धरने, प्रदर्शन, सत्याग्रह व् जल सत्याग्रह किये और न्यायालय में भी लड़ाई लड़ी। सन 2008 में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने विस्थापितों को जमीन देने का आदेश दिया. परन्तु सरकार उसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील में चली गयी। सन 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने पुनः जमीन देने का आदेश दिया और इस हेतु शिकायत निवारण प्राधिकरण के समक्ष जाने को कहा। 2300 विस्थापितों की याचिका पर शिकायत निवारण प्राधिकरण ने अपने सभी आदेशों में कहा कि सरकार ने पुनर्वास नीति का पालन नहीं किया है और यदि विस्थापित उसे दिए मुआवजे का आधा व् विशेष पुनर्वास अनुदान वापस करता है तो उसे जमीन दी जायेगी। 700 विस्थापितों द्वारा पैसा वापस करने के बावजूद सरकार द्वारा मात्र 200 लोगों को जमीं दिखाई गयी जो कि बंजर व् अतिक्रमित थी, जिसे विस्थापितों ने लेने से इंकार कर दिया।
करना पड़ा था जल सत्याग्रह ।
पुनर्वास न करने के बावजूद 2012 में सरकार ने ओम्कारेश्वर बांध में 2 मीटर पानी बढ़ा दिया गया। इसके खिलाफ नर्मदा आन्दोलन की वरिष्ठ कार्यकर्त्ता चित्तरूपा पालित और अनेक विस्थापितों ने ग्राम घोघलगाँव में 17 दिन पानी में रहकर जल सत्याग्रह किया था जिसके बाद सरकार को पानी कम करना पड़ा और तीन मंत्रियों की समिति बनाई और इस समिति की अनुशंसा पर 7 जून 2013 को 225 करोड़ रु का विशेष पैकेज दिया गया. इसके बाद पुनः 2015 आन्दोलन के वरिष्ठ कार्यकर्ता आलोक अग्रवाल और अनेक विस्थापितों ने 32 दिन पानी में रहकर जल सत्याग्रह किया था।
सर्वोच्च न्यायलय में लगायी अवमानना याचिका
यह पैकेज छोटे व् हरिजन/आदिवासी किसानों के लिये पुनर्वास नीति व् सर्वोच्च न्यायलय के आदेश के अनुरूप नहीं था और सरकार ख़राब जमीन दिखाकर विस्थापित को मजबूर कर रही थी, इस कारण नर्मदा आन्दोलन द्वारा सर्वोच्च न्यायलय में अवमानना याचिका दायर की गयी। इस याचिका पर गत 13 मार्च को अपने फैसले में न्यायालय ने आदेश दिया है कि राज्य सरकार 3 महीने के अन्दर विस्थापितों को पुनर्वास के लिए खेती योग्य जमीन उपलब्ध कराये और यदि विस्थापित मुआवजा व् विशेष पैकेज का विकल्प लेता है तो सरकार को मुआवजे व् पैकेज पर अतिरिक्त 15% प्रति वर्ष (अर्थात 6 वर्ष का 90%) ब्याज देना होगा।
नर्मदा आंदोलन की सरकार से मांग
कल ओम्कारेश्वर बांध प्रभावित ग्राम घोघलगाँव में सैकड़ो प्रभावितों ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर ख़ुशी व्यक्त करते हुए इसे नर्मदा आन्दोलन की बड़ी जीत बताया। साथ ही तय किया गया कि जमीन के साथ पुनर्वास से जुड़े अन्य मुद्दे जैसे घर प्लाट, अनुदान आदि सभी को लेकर तत्काल सरकार से बात की जायेगी। सरकार यदि बात नहीं करती है तो 28 मार्च को राजधानी भोपाल में सैकड़ों विस्थापित प्रदर्शन करेंगे।