बिहार के गोपालगंज जिले के दिग्गज नेता और पूर्व सांसद काली प्रसाद पांडे का शुक्रवार, 22 अगस्त की रात दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया। वह लंबे समय से बीमार थे और उनका इलाज दिल्ली में चल रहा था। उनके निधन की खबर से गोपालगंज और आसपास के इलाकों में शोक की लहर है। समर्थक उन्हें ‘शेर-ए-बिहार’ कहकर संबोधित करते थे।
कांग्रेस लहर में भी दर्ज की थी ऐतिहासिक जीत
काली प्रसाद पांडे का राजनीतिक करियर बेहद संघर्षपूर्ण और रोमांचक रहा। एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें विधायक रहते हुए हत्या के एक मामले में जेल जाना पड़ा। इसके बावजूद उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई।
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साल 1984 का लोकसभा चुनाव इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुआ था। पूरे देश में कांग्रेस के प्रति सहानुभूति की लहर थी और पार्टी को रिकॉर्ड तोड़ जीत मिली।
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लेकिन इसी चुनाव में काली प्रसाद पांडे ने गोपालगंज सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जेल से ही चुनाव लड़ा और कांग्रेस प्रत्याशी नगीना राय को भारी मतों से हराकर जीत दर्ज की।
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यह जीत न केवल उनकी लोकप्रियता का प्रतीक थी बल्कि बिहार की राजनीति में एक बड़ा संदेश भी।
राजीव गांधी ने कराया था कांग्रेस में शामिल
लोकसभा चुनाव में निर्दलीय जीत के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने काली पांडे को कांग्रेस में शामिल कराया।
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इसके बाद उन्होंने राजद और लोजपा जैसी पार्टियों में भी काम किया, मगर अंततः कांग्रेस में लौट आए।
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बाद के चुनावों में उन्हें पहले जैसी सफलता नहीं मिल सकी, लेकिन उनकी 1984 की जीत बिहार की राजनीति में एक मिसाल मानी जाती है।
परिवार और राजनीतिक विरासत
काली पांडे अपने पीछे पत्नी मंजू माला, भाई व बीजेपी एमएलसी आदित्य नारायण पांडे और तीन बेटे – पंकज कुमार पांडे, धीरज कुमार पांडे और बबलू पांडे को छोड़ गए हैं। उनके निधन के बाद राजनीतिक हलकों में यह चर्चा तेज है कि क्या उनके परिवार के सदस्य उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाएंगे।





