भोपाल।
इन दिनों एमपी की राजनीति देशभर में चर्चा का विषय बनी हुई है। खास करके ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद सियासी पारा अपने चरम पर है। कांग्रेस लगातार सिंधिया पर हमले बोल रही है, उन्हें पुरानी बातों को याद करवा रही है।धोखेबाजी और पद की लालसा जैसे शब्दों का प्रयोग कर तंज कर रही है।इसी बीच पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह ने ‘महाराज’ पर जमकर हमला बोला। उन्होंने आरोप लगाया है कि राज्यसभा की टिकट और मोदी कैबिनेट में मंत्री पद के लिए आपने कांग्रेस और गांधी परिवार को धोखा दिया।वही खुलासा किया कि उन्हें भी आज से 50 साल पहले जनसंघ (अब भाजपा) में शामिल होने का ऑफर मिला था।
उन्होंने ट्वीटर के माध्यम से अपनी चुप्पी तोड़ी है और एक के बाद एक ट्वीट कर कई खुलासे किए है। दिग्विजय ने लिखा है कि मैंने कभी यह उम्मीद नहीं की थी कि महाराज (क्षमा करें, क्योंकि मैं खुद एक रियासती पृष्ठभूमि से आता हूं, मैं उन्हें ज्योतिरादित्य कह कर संबोधित नहीं कर सकता) कांग्रेस और गांधी परिवार को धोखा देंगे और किसके लिए! राज्यसभा और कैबिनेट मंत्री बनने मोदीशाह के नेतृत्व में? दुःखद है कभी भी उनसे यह उम्मीद नहीं करता था। लेकिन फिर कुछ लोगों के लिए पॉवर ऑफ हंगर (सत्ता की भूख), विश्वसनीयता और विचारधारा जो एक स्वस्थ लोकतंत्र का सार है से अधिक महत्वपूर्ण है।
दिग्विजय ने आगे किस्सा सुनाते हुए लिखा है कि राजमाता विजया राजे सिंधिया जी, जिनके लिए मेरे मन में अभी भी बहुत सम्मान है, वे चाहती थी कि मैं 1970 में जनसंघ में शामिल हो जाऊं, जब मैं राघौगढ़ नगर पालिका का अध्यक्ष था, लेकिन मैंने विनम्रता से मना कर दिया जब मैंने गुरु गोलवलकर की किताब “बंच ऑफ थॉट्स” को पढ़ा और आरएसएस के नेताओं से बातचीत की। मैं संघ / भाजपा से बिलकुल सहमत नहीं हूँ लेकिन उनकी विचारधारा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता की प्रशंसा करता हूँ। आरएसएस 1925 से 90 के दशक तक अपने अंतिम लक्ष्य “हिंदू राष्ट्र” को भुलाए बगैर दिल्ली में सत्ता में आने के लिए इंतजार किया। उन्होंने सफलतापूर्वक समाजवादियों और विशेष रूप से जेपी और अब नीतीश को आरएसएस प्रचारक को पीएम बनाए जाने के अपने अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मूर्ख बनाया है।
मुझे पद का मोह नही
दिग्विजय ने बताया कि मैं सत्ता से बाहर रहा और कांग्रेस पार्टी के लिए 2004 से 2014 तक काम किया, इस तथ्य के बावजूद कि मुझे मंत्रिमंडल में शामिल होने और राज्यसभा में जाने की पेशकश की गई थी लेकिन मैंने विनम्रता से मना कर दिया। मैं अपने गृह क्षेत्र राजगढ़ से आसानी से लोकसभा में आ सकता था लेकिन मैंने मना कर दिया और कांग्रेस उम्मीदवार को जीत मिली। क्यों? क्योंकि मेरे लिए विश्वसनीयता और विचारधारा अधिक महत्वपूर्ण है जो दुर्भाग्य से भारतीय राजनीतिक परिदृश्य से गायब हो गई है। दुखद है।
आरएसएस प्रचारकों की इस नई नस्ल का मोदी सबसे शानदार उदाहरण
आगे दिग्विजय ने लिखा है कि मैंने ऐसे आरएसएस कार्यकर्ताओं को भी देखा है जिन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर अपने परिवार को संघ के लिए काम करने के लिए छोड़ दिया। लेकिन अब आरएसएस के नए प्रचारक बदल गए हैं। नरेंद्र मोदी आरएसएस के प्रचारकों की इस नई नस्ल का सबसे शानदार उदाहरण हैं। मैं नरेंद्र मोदी जी का प्रशंसक नही हूँ बल्कि उनके सबसे कटु आलोचकों में से एक हूँ, लेकिन हर मुद्दे और हर अवसर पर बिना कोई समझौता किए देश को ध्रुवीकृत करने के उनके साहस के प्रयास की प्रशंसा करता हूं। ऐसा करते वक़्त उन्होंने कभी परवाह नही की कि भारत के सनातन धर्म और हिंदू धर्म की मान्य परंपराओं द्वारा बुने गए सामाजिक ताने बाने को नष्ट करने से देश को क्या नुकसान हो रहा है?
मेरे पिता नास्तिक और मेरी माँ बहुत धार्मिक थी
दिग्विजय आगे लिखते है मैं ऐसे परिवेश में पला बढ़ा जहाँ मेरे पिता नास्तिक थे और मेरी माँ बहुत धार्मिक थीं। मेरे लिए मेरा धर्म सनातन धर्म है और सार्वभौम भाईचारे में मेरा विश्वास है।1981 में जब मैं भारत के सबसे अधिक सम्मानित और वरिष्ठतम जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी से मिला तब मेरी मान्यताओं को और दृढ़ता मिली। और मैंने उनसे “दीक्षा” ले ली। मेरे लिए मेरा धर्म मानवतावाद “इन्सानियत” है जो हिंदुत्व के बिलकुल विपरीत है। अपने आप को शक्तिशाली बनाने की बजाय मेरे लिए सत्ता सिर्फ मानवता की सेवा करने के संकल्प को पूरा करने का साधन मात्र है।