विलुप्त Cheetah को फिर से बसाने विशेषज्ञों ने एमपी का किया दौरा, चार स्थानों का किया चयन

Gaurav Sharma
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भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। भारत सरकार वन्य जीव-जंतुओं को संरक्षित रखने के लिए कई अभियान चला रही है। वहीं कई दशक पहले विलुप्त हुए चीता को फिर से देश के बेहतर स्थानों पर बसाने के लिए सुरक्षित स्थानों का चयन किया जा रहा है। 7 दशक पहले देश में विलुप्त हुए चीते की प्रजाति (Cheetah) को बचाने के लिए देहरादून के भारतीय वन्य जीव संस्थान (Wildlife Institute of India) के विशेषज्ञों ने मध्यप्रदेश का दौरा कर चार स्थानों का चयन किया है।

उच्चतम न्यायालय ने दी इजाजत

बता दें कि भारत देश में साल 1947 में ही अंतिम बार धब्बेदार चीता (Cheetah) को देखा गया था, जिसके बाद साल 1952 में इस तेज दौड़ने वाले धब्बेदार चीते को दुनिया में विलुप्त घोषित कर दिया गया। इसी को मद्देनजर रखते हुए भारतीय वन्यजीव संस्थान ने चीते को देश में फिर से बसाने के उद्देश्य से एक महत्वकांक्षी योजना बनाई। जिसके बाद अफ्रीकी चीते को प्रायोगिक तौर पर भारत में लाने के लिए उच्चतम न्यायालय ने जनवरी 2020 में इजाजत दे दी है।

विशेषज्ञों की टीम ने एमपी का किया दौरा

अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक जेएस चौहान ने कहा कि चीते को देश में फिर से बसाने का एक बेहतर प्रयास किया जा रहा है। इसी उद्देश्य से भारतीय वन्यजीव संस्थान के विशेषज्ञों ने एक टीम का गठन किया है। जिन्होंने बीते कुछ दिन पहले मध्यप्रदेश का दौरा किया और वहां के चार स्थानों पर चीते को बसाने के लिए चुना है।

चीतों को बसाने के लिए चुना गया स्थान

  •  सागर में नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य
  •  श्योपुर जिले में कूनो-पालपुर अभयारण्य
  •  नीमच और मंदसौर की उत्तरी सीमा पर स्थित गांधी सागर अभ्यारण
  •  शिवपुरी में माधव राष्ट्रीय उद्यान

उन्होंने कहा कि भारतीय वन्यजीव संस्थान के ‘वन्यजीव पारिस्थितिकी एवं संरक्षण जीव विज्ञान विभाग’ के डीन डॉ. यादवेन्द्र झाला एवं दो अन्य वैज्ञानिकों ने यह देखने के लिए इन चार स्थानों का निरीक्षण किया कि ये स्थान चीतों के लिए उपयुक्त है या नहीं।

मध्यप्रदेश में रहा है चीतों का इतिहास

जेएस चौहान ने बताया कि भारतीय वन्यजीव संस्थान के ‘वन्य जीव पारिस्थितिकी एवं संरक्षण जीव विज्ञान विभाग’ (Department of Wildlife Ecology and Conservation Biology) के डीन डॉक्टर यादवेंद्र झाला के साथ दो अन्य वैज्ञानिकों ने इन स्थानों का निरीक्षण किया। जहां उन्होंने देखा कि यह स्थान चीतों को बसाने के लिए उचित है या नहीं। इसी कड़ी में जेएस चौहान ने पन्ना जिले के बाघ अभयारण्य में बाघों को फिर से संरक्षित कर बसाने की ओर भी इशारा किया। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में काफी लंबे वक्त से इनके संरक्षण का इतिहास देखा गया है। इसी को देखते हुए हमने मध्यप्रदेश का चयन किया।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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