MP News: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने नर्मदापुरम कलेक्टर सोनिया मीणा पर नाराजगी जताई है। भूमि विवाद से जुड़े मामले में हाइकोर्ट जज को सीधे पत्र लिखना दुस्साहस पूर्ण क़दम बताया है। साथ ही सीएस को कार्रवाई करने और अगस्त तक रिपोर्ट सौंपने का आदेश भी जारी किया है। दरअसल, कलेक्टर को कोर्ट में सुनवाई के दौरान पेश होने का आदेश जारी किया गया था। लेकिन उन्होनें जज को एडीएम के हाथों चिट्ठी लिखकर जवाब दिया है।
क्या है मामला?
कोर्ट के अनुसार क्योंकि नर्मदा पुरम कलेक्टर रेवेन्यू डिस्ट्रिक्ट की हेड रहती हैं। तो उनकी उपस्थिति में हाई कोर्ट को यह पूरा मामला समझने और सुलझाने में मदद मिलती। लेकिन कलेक्टर नर्मदा पुरम द्वारा किसी भी प्रकार की जानकारी दिए बिना हाई कोर्ट की सुनवाई में नहीं पहुंचाना हुआ। इसको लेकर हाईकोर्ट ने इस बात का जवाब देने के लिए कलेक्टर नर्मदा पुरम को उपस्थित होने के लिए कहा।
सीधे न्यायालय को पत्र नहीं दे सकते- हाईकोर्ट ने कहा
निजी कार्य और दुर्घटना में चोटिल होने को लेकर कलेक्टर नर्मदापुरम द्वारा मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय से सीधे उपस्थित न होने को लेकर पत्र लिखा गया। क्योंकि कलेक्टर नर्मदापुरम इस मुकदमे में राज्य सरकार के तौर पर एक पार्टी है। इसको लेकर हाईकोर्ट ने उनके द्वारा सीधे कोर्ट को पत्र लिखना गलत बताया, क्योंकि मुकदमे की कोई भी पार्टी सीधे न्यायालय को पत्र नहीं दे सकती है।
इस बात को लेकर मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय न केवल भारी आपत्ति जताई। बल्कि मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव से कलेक्टर नर्मदापुरम के खिलाफ एक माह के अंदर एक्शन लेने के लिए आदेश जारी किए जिसकी रिपोर्ट मुख्य सचिव को कोर्ट के रजिस्ट्रार के समक्ष पेश करने की कोर्ट ने बात कही है।
एडिशनल कलेक्टर देवेंद्र कुमार को ट्रेनिंग पर भेजने का आदेश जारी
कोर्ट की प्रक्रिया और केस की कार्यवाही के दौरान एडिशनल कलेक्टर नर्मदापुरम देवेंद्र कुमार सिंह और राकेश खजूरिया तहसीलदार सिवनी मालवा जिला नर्मदापुरम द्वारा किए गए एक्शन को लेकर भी कोर्ट ने असंतुष्टि जताई, इसको लेकर कोर्ट ने दोनों को 6 माह की ट्रेनिंग पर भेजने के आदेश दिए हैं।
कोर्ट ने कहा दोनों अधिकारियों से सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट के आदेश के साथ कानून को समझने में चूक हुई है, इसलिए पार्टियों के अधिकारों को उन अधिकारियों की दया पर नहीं छोड़ा जा सकता जो मामले को समझने की स्थिति में नहीं हैं।
इसके साथ ही कोर्ट ने दोनों अधिकारियों के 1 वर्ष तक के लिए अर्ध न्यायिक शक्ति और मजिस्ट्रियल शक्तियों के निर्वहन करने पर भी रोक लगाई है। इतना ही नहीं प्रशिक्षण पूरा करने के बाद दोनों ही अधिकारी एक वरिष्ठ अधिकारी की देखरेख में काम करेंगे, जो इन अधिकारियों की अर्ध न्यायिक और मजिस्ट्रेट मामलों से निपटने की क्षमता का परीक्षण करेगा, यदि उस अधिकारी को इन दोनों शक्तियों को लेकर इन अधिकारियों में दक्षता दिखाई देती है तो वह उनकी शक्तियों को बहाल कर देगा। या फिर छह माह के लिए प्रशिक्षण बढ़ा जाएगा।
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