Suicide : नाबालिग पढ़ाई के प्रेशर के चलते झूला फांसी के फंदे से

Gaurav Sharma
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भोपाल,डेस्क रिपोर्ट। पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा, बेटा हमारा ऐसा काम करेगा। लेकिन कभी-कभी मां बाप का नाम रोशन करने के चक्कर में बच्चों पर पढ़ाई का इतना बोझ बढ़ जाता है कि वह आत्महत्या (Suicide) करने में ही अपनी भलाई समझने लगते है। एक ऐसा ही मामला राजधानी भोपाल (Bhopal) से आया है, जहां 14 साल के नाबालिग ने फांसी लगाकर खुद को मौत के हवाले (Suicide )कर दिया। बता दें की नाबालिग नौवीं क्लास का स्टूडेंट था और उस पर पढ़ाई का बहुत प्रेशर था। बताया जा रहा है कि मृतक के माता-पिता पढ़ाई को लेकर उसके बड़े भाई से उसकी तुलना करते रहते थे, यही कारण है कि नाबालिग मानसिक तनाव (Mental Pressure) से जूझ रहा था। हालांकि पुलिस को मौके से सुसाइड नोट नहीं मिला है लेकिन परिजनों के बयान के आधार पर पुलिस पढ़ाई के प्रेशर को सुसाइड का कारण समझ कर कार्रवाई कर रही है।

पूरा मामला अन्ना नगर क्षेत्र का जहां अन्ना नगर रेलवे पटरी के पास नरेश कुशवाहा रहते हैं। नरेश कुशवाहा और उनकी पत्नी एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करते हैं। उनके दो बच्चे हैं एक बेटा दसवीं में पढ़ता है जबकि 14 साल का नाबालिग करण नौवीं कक्षा में पढ़ता था। गोविंदपुरा पुलिस के अनुसार शनिवार को जब माता-पिता ड्यूटी पर चले गए और बड़ा भाई दोपहर में स्कूल चला गया था तो करण घर में अकेला रह गया था‌। शाम को स्कूल से नरेश कुशवाहा का बड़ा बेटा घर लौटा तो उसने देखा कि करण फांसी के फंदे से लटका हुआ है, जिसके बाद उसने तुरंत फोन करके माता पिता को घर बुलाया । घटना की पूरी जानकारी नरेश कुशवाहा ने घर पहुंचकर पुलिस को दी जिसके बाद पुलिस ने मौके पर पहुंचकर शव बरामद कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया।

पूरे मामले को लेकर पुलिस ने जब जांच पड़ताल की तो परिजनों ने बताया कि करण पढ़ाई में कमजोर था। वह बहुत ही मुश्किल से 9 वीं कक्षा तक पहुंचा था । करण को हिंदी भी ठीक से लिखनी नहीं आती थी, जिसको लेकर मृतक के माता-पिता उसे पढ़ाई करने के लिए कहते रहते थे और इसी कारण से वह मानसिक तनाव से जूझ रहा था।

जानकारी के अनुसार नरेश कुशवाहा अपने दोनों बच्चों को अच्छे से पढ़ा लिखा कर बड़ा आदमी बनाना चाहते थे। वो अक्सर छोटे बेटे करण को बड़े भाई की तरह पढ़ने के लिए कहते थे लेकिन बड़े भाई का पढ़ाई में अच्छे होने के चलते हैं माता-पिता का पूरा फोकस उसी पर था और करण पर वो ज्यादा ध्यान नहीं देते थे। करण को बार-बार बड़े भाई की तरह पढ़ाई करने के लिए कहते थे, लेकिन उसका मन नहीं लगता था और माता-पिता की इन्हीं बातों के चलते करण गुमसुम रहने लगा था। वहीं इस पूरे मामले को लेकर पुलिस को कोई सुसाइड नोट (Suicide  Note) नहीं मिला है और ना ही मां-बाप सुसाइड (suicide) के पीछे का कारण बता पा रहे हैं।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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