MP Best Food: समृद्धि और संस्कृति से भरपूर मालवा एक ऐसी जगह है जहां पर हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। पौराणिक इतिहास, मान्यता, धार्मिक नगरी से परिपूर्ण मध्य प्रदेश, देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। एमपी टूरिज्म (MP Tourism) के लिए पहुंचने वाले लोगों को यहां की खूबसूरती जितना आकर्षित करती है उतना ही यहां के लजीज व्यंजनों का स्वाद भी उन्हें मोह लेता है।
मध्य प्रदेश के हर शहर का स्वाद निराला है। राजधानी भोपाल की तंग गलियों में मिलने वाली स्वादिष्ट मावा बाटी हो या फिर इंदौरी पोहा, जो भी इन चीजों का स्वाद चख लेता है फिर कभी नहीं भूलता। मालवा अपने नमकीन के लिए भी खासा प्रसिद्ध है। इनमें से सबसे खास है यहां की सेव है। उज्जैन और इंदौर में मिलने वाली लजीज सेव का स्वाद तो आप में से कई लोगों ने चखा होगा। लेकिन आज हम आपको एक खास और स्वादिष्ट सेव के बारे में बताते है बेसन से बनने वाली सेव के बिलकुल उलट इसे काली मूंग से तैयार किया जाता है। देश से विदेश तक काली मूंग की इस सेव की डिमांड है और यह लगभग 25 देशों तक पहुंचाई जाती है।
काली मूंग की सेव का इतिहास
काली मूंग से सेव बनाने का यह सिलसिला लगभग 127 साल पहले शुरू हुआ। गरोठ इलाके में पहले मूंग की उपज काफी अच्छी होती थी और पौष माह में यहां पर भगवान को मूंग से बने व्यंजन बनाकर परोसे जाते थे। नगर के एक व्यापारी जिनका नाम सकरजी उदिया था उन्होंने मूंग की सेव बनाई और भगवान को इसका भोग लगाया। उनके पुत्र जगन्नाथ ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया और अब उनके पौत्र इस शानदार जायके को लोगों तक पहुंचा रहे हैं। गरोठ की हर होटल पर ये मूंग सेव मिलती है और रोजाना नगर में होने वाली इसकी खपत को मात्रा 10 क्विंटल हैं।
नगर मे स्थित गुप्तेश्वर महादेव मंदिर में आज भी भगवान को हर व्यापारी सीजन की अपनी पहली सेव की खेप अर्पित करता है। इसके बाद ही उसे बेचना शुरू किया जाता है। मंदिर में इस सेव को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। कुछ लोग मन्नतों को पूरा करने के लिए भी मंदिरों में सेव चढ़ाते हैं। मंदिर से सेव प्रसादी के रूप में दिए जाने का कारण गरीब वर्ग तक पौष्टिक आहार पहुंचाना है।
ऐसे बनती है सेव
पहले की तरह अब मालवा में काली मूंग की उतनी उपज नहीं होती है। अब राजस्थान और महाराष्ट्र से मूंग मंगवाई जाती है और इसका आटा पिसवाने के बाद उसमें लोंग, हींग, मिर्च सहित स्वादिष्ट मसाले डाल कर मूंगफली के तेल में तलकर तैयार किया जाता है। सेव की कीमत की बात करें तो नॉर्मल सेव के मुकाबले इसकी कीमत 240 रुपए प्रति किलो है। शुद्ध मूंगफली के तेल में तैयार किए जाने की वजह से लगभग तीन महीने तक ये खराब नहीं होती है। गरोठ के आसपास क्षेत्रों में रहने वाले जिन लोगों का परिवार विदेश में रहता है उन तक ये सेव पहुचाई जाती है और लगभग 25 देशों में हर साल इसे भेजा जाता है।
सर्दियों में ही खाई जा सकती है सेव
काली मूंग से बनाई जाने वाली यह सेव नगर में पहले एक या दो जगह मिलती थी। लेकिन डिमांड बढ़ जाने के कारण अब यह कई जगह पर मिलने लगी है। यह सेव सर्दियों में खाने में ही टेस्टी लगती है। इसे गर्मियों में नहीं खाया जा सकता क्योंकि तासीर गर्म होने के कारण बीमार पड़ सकते हैं। इस कारण सिर्फ सर्दियों के तीन महीने में ये सेव बनाई जाती है।