कर्मचारी आयोग को लेकर सीएम शिवराज का यह महत्वपूर्ण निर्णय

Kashish Trivedi
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भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। मध्य प्रदेश (Madhya pradesh) में कर्मचारियों की मांगों पर सीधे फैसला लेने वाले कर्मचारी आयोग (Staff commission) के कार्यकाल में 1 वर्ष का इजाफा किया गया है। बीते दिनों शिवराज सरकार (Shivraj government) ने यह बयान निर्णय लिया है। जिसके मुताबिक राज्य शासन द्वारा कर्मचारी आयोग के कार्यकाल में 1 वर्ष की वृद्धि कर दी गई है। वहीं अब 11 दिसंबर 2021 तक इसका कार्यकाल मान्य रहेगा।

दरअसल कर्मचारी आयोग का गठन 12 दिसंबर 2019 को किया गया था। वही आयोग को 1 वर्ष की मान्यता दी गई थी। जिसके बाद 11 दिसंबर 2020 को कर्मचारी आयोग का कार्यकाल खत्म हो गया था। शिवराज सरकार ने शनिवार को ही बैठक में कर्मचारी आयोग के कार्यकाल में 1 वर्ष की वृद्धि और कर दी है। जिसके बाद कर्मचारी आयोग का कार्यकाल 11 दिसंबर 2021 तक के लिए मान्य कर दिया गया है।

हालांकि आयोग के पुनर्गठन और अध्यक्ष तथा सदस्यों के चयन की कार्यवाही अभी पूरी नहीं की गई है। इस मामले में लगातार कर्मचारियों की मांग जारी है। जिसके बाद माना जा रहा है कि अलग से जल्द ही आयोग के पुनर्गठन एवं अध्यक्ष तथा सदस्यों के मनोनयन की कार्रवाई पूरी की जाएगी।

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मध्य प्रदेश कर्मचारी आयोग का गठन

बता दे कि मध्यप्रदेश विधानसभा 2018 के चुनाव के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ (kamalnath) ने राज्य कर्मचारियों के लिए एक आयोग के गठन का वायदा किया था। जहां सत्ता में आते ही कमलनाथ सरकार ने मध्य प्रदेश कर्मचारी आयोग का गठन किया था। यह गठन कर्मचारियों की मांग पर सीधा फैसला लेता है। इसके अलावा कर्मचारियों की वेतन, विसंगति, सेवा शर्तों के साथ सरकार से कार्यप्रणाली में सुधार की सिफारिशें भी करता है।

कर्मचारी आयोग का काम

कर्मचारी आयोग का काम राज्य के सिविल सेवाओं को प्राप्त हो रहे क्रमोन्नत, समयमान वेतनमान से जुड़े नियम निर्देश का अध्ययन करके सुझाव देना भी है। इसके साथ ही रिटायर होने वाले पेंशनर को दी जा रही सुविधाओं के साथ समस्याओं को दूर करना भी कर्मचारी आयोग के काम में शामिल किया गया है। वही कर्मचारी आयोग विधिक संस्थाओं के कर्मचारी, शासन की अनुदान से पोषित संस्थाओं के कर्मचारी, संविदा सेवा, स्थाई सेवाओं के कर्मी, अंशकालीन पूर्वकालीन मानदेय प्राप्त कर्मचारी और सभी पेंशनर की सिफारिश करता है।

गौरतलब हो कि इस आयोग के गठन का निर्णय कमलनाथ मंत्रिमंडल की अध्यक्षता बैठक में लिया गया था। जहां तत्कालीन जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा सहित तत्कालीन राजस्व मंत्री गोविंद राजपूत और तब कांग्रेस में रहे स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट भी मौजूद थे।


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