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Mon, Dec 8, 2025

अनिल अंबानी को कोर्ट से मिली राहत, अब होगी बकाए 28483 करोड़ की वसूली, जानिए क्या है पूरा मामला?

Written by:Rishabh Namdev
सुप्रीम कोर्ट द्वारा रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर की दो सहायक कंपनियां, बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड और बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड, को 28,483 करोड़ रुपए का बिजली बकाया वसूली की मंजूरी मिल गई है। चलिए जानते हैं आखिर यह पूरा मामला क्या है?
अनिल अंबानी को कोर्ट से मिली राहत, अब होगी बकाए 28483 करोड़ की वसूली, जानिए क्या है पूरा मामला?

अनिल अंबानी, जो इस समय लोन फ्रॉड के मामले का सामना कर रहे हैं, को अब कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने अनिल अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर की दो सब्सिडियरी कंपनियों, बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड और बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड, को 28,483 करोड़ रुपए का बिजली बकाया बिल वसूलने की मंजूरी दी है। इसे लेकर शुक्रवार को रिलायंस इन्फ्रा ने रेगुलेटरी फाइलिंग में कहा कि बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड और बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड पर 31 जुलाई 2025 तक कुल 28,483 करोड़ रुपए बकाया है।

अब सवाल यह है कि इस फैसले से अनिल अंबानी को क्या फायदा हुआ है? दरअसल, कोर्ट के आदेश के चलते रिलायंस इन्फ्रा की सब्सिडियरी कंपनियां 1 अप्रैल 2024 से शुरू होने वाली 4 साल की अवधि में 28,483 करोड़ रुपए की नियामक परिसंपत्तियों की वसूली कर सकेंगी।

जानिए क्या है पूरा मामला?

जानकारी के लिए बता दें कि रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर की बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड और बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड में 51% की हिस्सेदारी है, जबकि बची हुई 49% हिस्सेदारी दिल्ली सरकार की है। ऐसे में रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर और दिल्ली सरकार मिलकर दिल्ली के लगभग 53 लाख घरों में बिजली सप्लाई करती हैं। वहीं, बुधवार को हुई सुनवाई में कोर्ट द्वारा यह निर्णय लिया गया कि 27,200.37 करोड़ रुपए की बहन लागत सहित नियामक परिसंपत्तियों का भुगतान 3 साल के अंदर इन कंपनियों को किया जाना चाहिए। रेगुलेटरी एसेट्स वे होते हैं जो बिजली वितरण कंपनी द्वारा किए गए खर्च होते हैं, जिन्हें आगे चलकर राज्य नियामक के द्वारा टैरिफ के रूप में उपभोक्ताओं से वसूलने के लिए योग्य माना जाता है।

कोर्ट ने क्या निर्णय लिया?

वहीं, यह भी बताया गया कि रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर की बिजली वितरण कंपनियों ने 2014 में कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की थी। इस याचिका में उन्होंने गैर-लागत प्रतिबंधित टैरिफ, नियामक परिसंपत्तियों का अवैध निर्माण और नियामक परिसंपत्तियों का परिसमापन न करने का मुद्दा उठाया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी याचिका पर विस्तार से सुनवाई की और अंत में सभी पक्षों को सुनने के बाद निर्णय लिया कि विद्युत नियामक आयोग मौजूदा नियामक परिसंपत्तियों के परिसमापन के लिए एक रोडमैप तैयार करे। इस रोडमैप में वहन लागत से निपटने के प्रावधान शामिल होने चाहिए।