मुकेश अंबानी की रिलायंस जियो ने अपना आईपीओ को 2025 के लिए टाल दिया है। कंपनी अब डिजिटल प्लान्स और वैल्यूएशन बढ़ाने पर ध्यान दे रही है। इस फैसले से निवेशक थोड़े निराश हो सकते हैं, लेकिन जियो के लिए ये रणनीतिक फैसला माना जा रहा है, जिससे कंपनी की पोजीशन और मजबूत हो सकती है।
कंपनी की टेलिकॉम यूनिट पहले ही इंडस्ट्री लीडर बन चुकी है, लेकिन अब उसका फोकस है अगली पीढ़ी की सेवाओं पर। जियो सैटेलाइट इंटरनेट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा सेंटर इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे सेक्टर्स में एंट्री कर रही है। फिलहाल किसी इनवेस्टमेंट बैंक की नियुक्ति नहीं की गई है, जिससे साफ है कि कंपनी कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहती। यह कदम आईपीओ से पहले मजबूत फाइनेंशियल प्रदर्शन और व्यापक ग्राहक आधार सुनिश्चित करने की दिशा में उठाया गया है।
जियो IPO में देरी की असली वजह
रिलायंस जियो का इरादा है कि उसकी शेयर बाजार में लिस्टिंग एक मजबूत स्थिति से हो, जिससे अधिकतम मूल्य प्राप्त किया जा सके। कंपनी की डिजिटल सर्विसेज का दायरा बढ़ रहा है और इसमें AI, हाई-स्पीड इंटरनेट और स्मार्ट कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स शामिल हैं। हाल में Nvidia जैसी टेक कंपनियों के साथ साझेदारी से उसकी तकनीकी क्षमता भी बढ़ी है। इस देरी को जियो की लॉन्ग-टर्म सोच के रूप में देखा जा रहा है, जहां प्राथमिकता तात्कालिक फायदों की बजाय टिकाऊ ग्रोथ को दी जा रही है।
भारतीय बाजार पर क्या पड़ेगा असर
भारत में हाल ही में IPO बाजार ने शानदार प्रदर्शन किया है, लेकिन जियो की अनुपस्थिति से अगले साल इस ट्रेंड में थोड़ी ठंडक आ सकती है। इसके बावजूद कंपनी की गतिविधियों से निवेशकों का भरोसा कमजोर नहीं होगा, क्योंकि जियो लगातार नए सेक्टर्स में मौजूदगी दर्ज करा रही है। साथ ही रिलायंस रिटेल का आईपीओ भी कुछ वर्षों के लिए टल गया है। इसका मतलब है कि रिलायंस ग्रुप फिलहाल केवल मजबूत नींव पर ध्यान दे रहा है। आने वाले वर्षों में ये दोनों आईपीओ भारतीय शेयर बाजार के लिए गेमचेंजर साबित हो सकते हैं।





