Dholkal Ganesh Chhattisgarh: घूमने फिरने के लिहाज से भारत एक समृद्धि राज्य हैं और यहां का इतिहास और संस्कृति हमेशा ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती आई है। ऐतिहासिक या धार्मिक स्थल हो या फिर खूबसूरत प्राकृतिक वादियां ऐसी कोई चीज नहीं है जिसे भारत ने अपने अंदर नहीं समेटा है।
यहां के हर राज्य का अपना अंदाज है और यहां की संस्कृति और परंपरा अक्सर ही लोगों को अपनी और आकर्षित करती रहती है। छत्तीसगढ़ भारत का एक ऐसा राज्य है जो अपनी शांत प्रियता के लिए जाना जाता है। यहां के कुछ इलाके अपने अंदर बेहतरीन इतिहास और संस्कृति को समेटे हुए हैं। यही वजह है कि यहां अक्सर पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। आज हम आपको यहां के एक प्रसिद्ध टूरिस्ट स्पॉट की जानकारी देते हैं, जिसकी खूबसूरती हमेशा ही सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
यहां है Dholkal Ganesh
छत्तीसगढ़ में वैसे तो कई सारे प्राचीन मंदिर और प्रतिमाएं मौजूद है जो विश्व भर में अपनी पहचान रखते हैं। बहुत से ऐसे स्थान है जो अपनी पौराणिक कथाओं के लिए पहचाने जाते हैं। इन्हीं में से एक है ढोलकल गणेश मंदिर, जो कई हजार फिट की ऊंचाई पर बसा हुआ है और इससे पौराणिक कथाओं का भी संबंध है।
ढोलकल गणेश
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले से 18 किलोमीटर की दूरी पर फरसपाल गांव मौजूद है। किसी के पास स्थित बैलाडीला पहाड़ी पर लगभग 3000 फीट की ऊंचाई पर ढोलकल गणेश की प्रतिमा विराजित है। इस मंदिर से कई सारी पौराणिक कथाओं का संबंध बताया जाता है और लोगों के मुताबिक ये 1000 वर्ष से ज्यादा पुरानी प्रतिमा है। 9 वीं से 11 वीं शताब्दी के बीच नागवंशी शासकों के काल में इसका निर्माण किया गया था।
ग्रेनाइट पत्थर से बनी हुई इस प्रतिमा की ऊंचाई 3 फीट और चौड़ाई 3.5 फीट है। मूर्ति में गणेश जी ने अपने ऊपरी दाएं हाथ में फरसा और बाए हाथ में अपना टूटा हुआ दांत पकड़ा हुआ है। निचले दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में उन्होंने लड्डू पकड़ा हुआ है।
यह ढोलकल गणेश मंदिर अपने अंदर कई रहस्य और इतिहास समेटे हुए हैं क्योंकि मानव बस्ती से दूर 3000 फीट की ऊंचाई पर यह सुंदर सी प्रतिमा विराजित है। इस प्रतिमा को स्थापित क्यों किया गया था अब तक इस बारे में जानकारी नहीं मिल पाई है और यही इसके रहस्य की सबसे बड़ी वजह है।
मंदिर का इतिहास
इस मंदिर से जो पौराणिक कथा जुड़ी हुई है उसके मुताबिक परशुराम भगवान शिव से मिलना चाहते थे। लेकिन श्री गणेश ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए उन्हें मिलने से रोक दिया जिससे वह क्रोधित हो गए और इस तरह से परशुराम और श्रीगणेश में युद्ध शुरू हो गया।
यह दोनों लड़ते-लड़ते धरती लोक पर पहुंच गए और यहां पर परशुराम के प्रहार से श्री गणेश का एक दांत टूट गया। कथाओं के मुताबिक धरती की जिस जगह पर इन दोनों के बीच युद्ध चल रहा था वह बैलाडीला की पहाड़ियां है।
यह जगह कुछ समय पहले ही लोगों की नजर में आई है क्योंकि साल 2012 में एक पत्रकार ने यहां की खूबसूरत सी तस्वीर खींचकर लोगों के बीच पेश करी थी और देखते ही देखते यह जगह लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गई है। अब दूरदराज से लोग यहां पर भगवान गणेश के दर्शन करने के लिए पहुंचने लगे हैं।
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मंदिर जाने का सही समय
ढोलकल गणेश मंदिर के दर्शन करने के लिए आप किसी भी मौसम में जा सकते हैं। यहां हर मौसम में आपको खूबसूरत प्राकृतिक वादियों का दीदार करने के लिए मिलेगा। मानसून के मौसम में यहां पर फिसलन भरी चट्टानों से बच कर रहना जरूरी है। गर्मी के मौसम में अप्रैल और जून का समय यहां जाने के लिए बेस्ट है। घने जंगलों के बीच बसा होने की वजह से यह स्थान ठंडा है और यहां गर्मी का एहसास नहीं होता।
कैसे पहुंचे मंदिर
अगर आप भी छत्तीसगढ़ जाने का प्लान बना रहे हैं यहां के इस खूबसूरत पर्यटन स्थल का दीदार करना बिल्कुल ना भूलें। ढोलकल गणेश जाने के लिए आपको सबसे पहले दंतेवाड़ा पहुंचना होगा। इसके बाद यहां से 13 किलोमीटर दूर फरसगांव मौजूद जहां से टूरिस्ट गाइड आपको इस जगह तक पहुंचा देंगे।
यह मंदिर घने जंगलों के बीच है और आपको लगभग 3 किलोमीटर का रास्ता पैदल तय करना होगा। मंदिर तक पहुंचना आसान नहीं है लेकिन प्रकृति प्रेमियों और ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए ये जगह बेस्ट है।
अगर आप हवाई मार्ग से यहां पहुंचना चाहते हैं तो निकटतम हवाई अड्डा जगदलपुर है। ये एयरपोर्ट विशाखापट्टनम और रायपुर से कनेक्ट है।
रेल मार्ग से अगर आपको यहां पहुंचना है तो निकटतम रेलवे स्टेशन दंतेवाड़ा है। जो कई जगह से रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग की बात करें तो रायपुर से दंतेवाड़ा और दंतेवाड़ा से फरसपाल गांव के बीच बस सुविधा मिलती है। जिसकी सहायता से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।
यहां पर्यटन के लिए आने वाले लोगों को आसपास मौजूद कुछ जगह भी अपनी और आकर्षित करती है। अगर आप। अपनी यात्रा को थोड़ा रोमांचक बनाना चाहते है तो यहां पर दंतेश्वरी माता का मंदिर मौजूद है। इस मंदिर को 52 वां शक्तिपीठ माना जाता है और कहा जाता है कि यहां माता सती के दांत गिरे थे। यहां आने वाले सभी लोगों की मनोकामना पूरी होती है।