पीड़ित का दर्द बताती आईपीएस की यह कविता “वाह थानेदार”

Gaurav Sharma
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रायपुर डेस्क रिपोर्ट। छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी आर के विज की एक कविता सोशल मीडिया पर बेहद पसंद की जा रही है। इसमें उन्होंने गांव से गए एक फरियादी की पीड़ा को व्यक्त करते हुए पुलिस स्टेशन के प्रभारी को केन्द्र बनाया है।

पीड़ित का दर्द बताती आईपीएस की यह कविता "वाह थानेदार"

1988 बैच के आईपीएस अधिकारी आरके विज 31 दिसंबर को रिटायर हो रहे हैं। विज सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रहते हैं और लगभग एक महीने पहले ही जब अशोक जुनेजा को डीजीपी बना दिया गया था और विज चूक गए थे तो उन्होंने ट्वीट किया था। इसमें उन्होंने लिखा था “कुछ कही, कुछ अनकही, कुछ ख्वाहिशें मेरी,जिंदगी भर अधूरी रही।” विज मध्य प्रदेश में कई जिलों के एसपी रह चुके है। विज ने सोशल मीडिया पर एक कविता साझा की है और बताया है कि उन्होने यह कविता पुलिस अधीक्षक झाबुआ रहते हुए लिखी थी और पुलिस अधिकारियों को सुनाई दी थी। कविता का शीर्षक है “वाह थानेदार।” ट्विटर में शुरू में उन्होंने उसकी चार पंक्तियां साझा करते हुए बाद में पूरी कविता को पेज के रूप में पोस्ट किया है।

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शुरुआती 4 पंक्तियों में लिखा है “लुटे हुए को लूटा, बैठे हुए को पीटा। फरियादी रोता रोता, गांव लौट गया रीता।” हालांकि विज ने कविता के साथ नोट लिखते हुए यह भी लिखा है कि इसे केवल कविता की तरह पढ़े और साथ ही यह भी बताया है कि थानेदारों का पक्ष कल प्रकाशित किया जाएगा। साथ ही आग्रह किया है कि इसे केवल कविता की तरह पढे। ट्विटर पर उनकी इस कविता को बेहद पसंद किया जा रहा है और लिखा गया है “जो बात आप ने 1995 में लिखी थी, वह आजकल हर जगह यही हो रही है। यहा सिर्फ दबे कुचले लोगों के साथ ही होता है।” अन्य ट्वीट में लिखा गया है “सत्य पर कविता लिखी है सर। आपको सैल्यूट।” एक अन्य ट्विट मे लिखा है कि “सर यह सुंदर कविता को पुलिस वाले अगर शपथ के तौर पर ले लें तो काफी जागरूकता पैदा होगी, ऐसा मेरा मानना है।”

 


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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