छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई और केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक को लेकर विवाद फिर से गरमा गया है। राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने मौजूदा सरकार पर आंकड़ों में हेरफेर कर खनन को मंजूरी देने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि यह फैसला रामगढ़ पर्वत की सांस्कृतिक धरोहर और लेमरू हाथी रिजर्व के लिए गंभीर खतरा है।
धरोहर से समझौता नही
टीएस सिंहदेव ने कहा कि सरकार ने कॉरपोरेट और पूंजीपतियों के हितों के लिए प्राकृतिक संसाधनों, आदिवासी जीवन और सांस्कृतिक विरासत को दांव पर लगा दिया। उन्होंने दावा किया कि 2020-21 में कांग्रेस सरकार ने वन विभाग के सर्वे के आधार पर कोल माइंस को एनओसी देने से इनकार कर दिया था, क्योंकि यह खदान रामगढ़ पर्वत से सिर्फ 10 किमी की दूरी पर है।
क्या है खतरा?
- खदान से लेमरू हाथी प्रोजेक्ट के हाथियों का पलायन संभव है, जिससे मानव-हाथी संघर्ष बढ़ेगा।
- 4 लाख से ज्यादा पेड़ों की कटाई हो सकती है।
- रामगढ़ पर्वत, सीता बेंगरा, जोगीमारा गुफा और प्राचीन नाट्यशाला जैसे स्थलों पर संकट गहराएगा।
आंकड़ों में हेरफेर का आरोप
सिंहदेव ने कहा कि वर्तमान सरकार ने राजस्थान सरकार की आड़ में खदान की दूरी को 11 किमी बताकर मंजूरी दी, जबकि पहले यह 10 किमी थी। उन्होंने आरोप लगाया कि इससे रामगढ़ पर्वत की दरारें और गहरी होंगी, जो पहले से दो खदानों के चलते प्रभावित है। टीएस सिंहदेव ने साफ कहा कि अगर खदान की मंजूरी वापस नहीं ली गई तो वह जन आंदोलन खड़ा करेंगे। उन्होंने एक वीडियो जारी कर कहा,
“रामगढ़ पहाड़ छत्तीसगढ़ और भारत की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और जनआस्था की अनमोल धरोहर है। इसे पूंजीपतियों के हित में नष्ट नहीं होने देंगे।”
यह मुद्दा कांग्रेस के अंदर भी मतभेद का संकेत दे रहा है। सिंहदेव के इस बयान से सरगुजा अंचल में विरोध की सुगबुगाहट तेज हो गई है। अब देखना होगा कि सरकार इस पर क्या रुख अपनाती है।





