बीते कुछ सालों में सस्पेंस और थ्रिलर फिल्मों का बोलबाला रहा है, लेकिन दर्शकों का एक बड़ा वर्ग अभी भी रोमांटिक और प्रेरणादायक कहानियों को पसंद करता है. ऐसे दर्शकों के लिए 2019 में आई मराठी फिल्म ‘आनंदी गोपाल’ एक बेहतरीन तोहफा साबित हुई है. यह फिल्म भारत की पहली महिला डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी के संघर्ष और उनकी असाधारण यात्रा को दिखाती है, जो आज भी लाखों लोगों को सपने देखने और उन्हें पूरा करने के लिए प्रेरित करती है।
दरअसल इस फिल्म से पहले दूरदर्शन पर इसी नाम से एक सुपरहिट सीरियल आया था, जिसने उस समय काफी लोकप्रियता बटोरी थी. सीरियल और फिल्म दोनों की कहानी आनंदी गोपाल जोशी और उनके पति गोपाल राव जोशी के जीवन पर आधारित है. यह कहानी बताती है कि कैसे एक कम उम्र की लड़की, जिसकी शादी एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से हो जाती है, अपने पति के सहयोग और अटूट समर्थन से डॉक्टर बनने का सपना पूरा करती है.
जानिए क्या है कहानी
आनंदी गोपाल जोशी का जन्म एक ऐसे दौर में हुआ था, जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था और महिलाओं की शिक्षा पर कई पाबंदियां थीं. उनकी शादी महज 9 साल की उम्र में गोपाल राव जोशी से हो गई थी. उस समय के लिहाज से यह एक आम बात थी, लेकिन गोपाल राव जोशी एक प्रगतिशील सोच वाले व्यक्ति थे. उन्होंने अपनी कम उम्र की पत्नी को न केवल पढ़ने के लिए प्रेरित किया, बल्कि उन्हें डॉक्टर बनने का सपना दिखाया. यह एक ऐसा सपना था जो उस समय कल्पना से भी परे था.
शिक्षा के लिए संघर्ष और पति का साथ
दरअसल शुरुआत में आनंदी का मन पढ़ाई में नहीं लगता था, लेकिन उनके पति गोपाल राव जोशी ने हार नहीं मानी. उन्होंने घर और समाज के भारी दबाव के बावजूद आनंदी को हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी जैसी भाषाएं पढ़ाईं. एक घटना ने आनंदी के जीवन को पूरी तरह बदल दिया. जब वे गर्भवती थीं, तब एक पुरुष ब्रिटिश डॉक्टर ने उनकी जांच की, जिससे उन्हें झिझक महसूस हुई. दुर्भाग्यवश, उनके बच्चे की मौत हो गई, जिसके बाद आनंदी ने डॉक्टर बनने का पक्का इरादा कर लिया. गोपाल राव जोशी ने न सिर्फ उनका साथ दिया बल्कि उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका भेजने का फैसला किया.
लोगों के लिए मिसाल बनी कहानी
आनंदी ने 1886 में वुमेन मेडिकल कॉलेज ऑफ पेंसिलवेनिया से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की और वेस्टर्न मेडिसिन की पढ़ाई करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं. भारत लौटकर उन्होंने महिलाओं के लिए कॉलेज खोलने की दिशा में भी कदम उठाए. कोल्हापुर के महाराजा ने उन्हें एल्बर्ट एडबर्ड अस्पताल में फीमेल वार्ड का इंचार्ज नियुक्त किया. हालांकि, नियति को कुछ और ही मंजूर था. भारत की यह पहली महिला डॉक्टर सिर्फ 21 साल की उम्र में टीबी जैसी गंभीर बीमारी के कारण 26 फरवरी 1887 को इस दुनिया को अलविदा कह गईं. उनकी यह छोटी सी जिंदगी, अपने आप में एक मिसाल बन गई, जिसने आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया.





