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Wed, Dec 17, 2025

आखिर बॉलीवुड की फिल्मों में क्यों रखा जाता है इंटरवल? हॉलीवुड की फिल्मों में क्यों नहीं होता है? यहां जानिए कारण

Written by:Ronak Namdev
Published:
फिल्में देखने का असली मजा थिएटर में ही आता है, और थिएटर की एक खास बात होती है इंटरवल। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर फिल्मों के बीच इंटरवल क्यों रखा जाता है? जानिए इंटरवल के पीछे की असली वजहें क्या है।
आखिर बॉलीवुड की फिल्मों में क्यों रखा जाता है इंटरवल? हॉलीवुड की फिल्मों में क्यों नहीं होता है? यहां जानिए कारण

भारतीय सिनेमा में जब भी कोई फिल्म थिएटर में रिलीज होती है, तो इंटरवल एक जरूरी हिस्सा होता है। चाहे फिल्म रोमांटिक हो या एक्शन से भरपूर, इंटरवल का टाइम फिक्स रहता है। पर क्या ये सिर्फ ऑडियंस को थोड़ी देर रुकने का मौका देने के लिए होता है या इसके पीछे कोई बड़ी वजह छिपी है? दरअसल, इंटरवल का कॉन्सेप्ट सिर्फ ब्रेक नहीं, बल्कि कई कमर्शियल, तकनीकी और साइकोलॉजिकल कारणों पर टिका है।

क्यों होता है इंटरवल? जानिए चार बड़े कारण

1. ऑडियंस के लिए रिफ्रेशमेंट ब्रेक

थिएटर में फिल्में देखने वाले दर्शक लगातार 90-100 मिनट तक एक ही जगह बैठे रहते हैं। ऐसे में एक छोटा सा ब्रेक न सिर्फ उन्हें फ्रेश महसूस कराता है, बल्कि बाथरूम जाने और थोड़ा स्ट्रेच करने का मौका भी देता है। लंबी फिल्में जैसे ढाई से तीन घंटे तक की होती हैं, वहां इंटरवल जरूरी हो जाता है ताकि दर्शकों का ध्यान भटके नहीं और वो फिल्म का दूसरा हिस्सा भी उतनी ही रुचि से देख सकें।

2. मल्टीप्लेक्स के लिए कमाई का जरिया

थिएटर में पॉपकॉर्न, कोल्ड ड्रिंक और स्नैक्स की बिक्री का सबसे बड़ा समय इंटरवल ही होता है। यही कारण है कि मल्टीप्लेक्स इंटरवल को हटाने का रिस्क नहीं उठाते। इंटरवल के दौरान थिएटर ऑपरेटर मोटी कमाई करते हैं और यह उनकी इनकम का एक अहम हिस्सा बन गया है। इसलिए चाहे फिल्म कितनी भी छोटी हो, इंटरवल का टाइम बुकिंग से पहले से तय होता है।

3. तकनीकी जरूरत और रील का बदलाव

पुराने ज़माने में फिल्में सेलुलॉइड रील पर चलाई जाती थीं और रील्स को बदलने का समय इंटरवल के जरिए लिया जाता था। हालांकि अब डिजिटल प्रोजेक्शन का जमाना है, लेकिन यह परंपरा आज भी जारी है। कुछ थिएटर मालिक और डायरेक्टर इसे एक नेरेटिव ब्रेक मानते हैं, जो कहानी को दो हिस्सों में बांटकर दर्शकों को सोचने का मौका देता है।

4. लंबी फिल्मों की थकावट को कम करने का तरीका

बॉलीवुड या दक्षिण भारतीय फिल्में अक्सर 150 मिनट से ज्यादा लंबी होती हैं। इस दौरान दर्शकों को बोरियत या थकान न हो, इसके लिए बीच में इंटरवल दिया जाता है। इंटरवल के बाद फिल्म का क्लाइमेक्स या ट्विस्ट वाला हिस्सा शुरू होता है, जो दर्शकों को दोबारा फ्रेश करके कहानी से जोड़ने में मदद करता है।

हॉलीवुड फिल्मों में क्यों नहीं होता इंटरवल?

वहीं अगर आप हॉलीवुड फिल्में देखने के शौकीन हैं, तो आपने जरूर नोट किया होगा कि उनमें इंटरवल नहीं होता। इसका बड़ा कारण यह है कि अंग्रेजी फिल्मों की अवधि आमतौर पर 90 से 120 मिनट के बीच होती है। इसके अलावा, हॉलीवुड की ज्यादातर स्क्रिप्ट थ्री-एक्ट स्ट्रक्चर पर आधारित होती हैं जिसमें स्टार्ट, कंफ्लिक्ट और क्लाइमेक्स सीधे फ्लो में दिखाया जाता है। ऐसे में बीच में इंटरवल से कहानी का फ्लो टूट सकता है और दर्शकों की एंगेजमेंट कमजोर पड़ सकती है। इसके अलावा अमेरिका और यूरोप में थिएटर कल्चर अलग है वहां पॉपकॉर्न के लिए ब्रेक नहीं, बल्कि कहानी की गहराई ज्यादा मायने रखती है। हालांकि कुछ खास स्क्रीनिंग या बहुत लंबी फिल्मों (जैसे Titanic या Gone With The Wind) में कभी-कभी इंटरमिशन शामिल किया गया है।