फिल्म और रंगमंच की दुनिया की मशहूर अभिनेत्री संध्या शांताराम अब इस दुनिया में नहीं रहीं हैं। 94 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। लंबे समय तक उन्होंने कला और परिवार दोनों में अपना अलग ही योगदान दिया था। बता दें कि संध्या का असली नाम विजय देशमुख था। उनका जन्म 1932 में कोच्चि में हुआ। बचपन से ही उन्हें रंगमंच और अभिनय का बहुत शौक था। उनके पिता भी थिएटर से जुड़े थे, इसलिए संध्या और उनकी बहनें भी बचपन से ही मंच और कला के बीच पली-बढ़ीं।
विजय ने एक्टिंग का सपना देखा और उसे पूरा करने में वी शांताराम ने उनका साथ दिया। वी शांताराम को संध्या की आवाज और अंदाज उनकी पत्नी जयश्री की याद दिलाते थे। वहीं, उन्होंने विजय को संध्या बनाया और उन्हें फिल्मों में मौका दिया।
ऐसे हुई शादी
संध्या और वी शांताराम की कहानी फिल्मों से शुरू हुई और शादी तक पहुंची। साल 1951 में वी शांताराम ने संध्या को अपनी मराठी फिल्म अमर भूपाली में कास्ट किया। इसके बाद संध्या ने वी शांताराम की कई फिल्मों में काम किया, जिनमें तीन बत्ती चार रास्ते, झनक झनक पायल बाजे, दो आंखे बारह हाथ, नवरंग, स्त्री, सेहरा, लड़की सहयात्री और पिंजरा जैसी फिल्में शामिल हैं। कुल मिलाकर उन्होंने लगभग 11 से 12 फिल्मों में केवल वी शांताराम के साथ ही काम किया।
1956 में हुई शादी
वी शांताराम की दूसरी पत्नी जयश्री के निधन के बाद साल 1956 में उन्होंने संध्या से शादी की। शादी के बाद संध्या ने पति का पूरा ख्याल रखा। जब वी शांताराम की आंखों में समस्या हुई और डॉक्टरों ने सर्जरी की सलाह दी, तो संध्या ने उनकी पूरी देखभाल की। उन्होंने कमरे को फूलों से सजाया ताकि पति का मन खुश हो। सर्जरी के बाद वी शांताराम ने जब आंखें खोलीं, तो उन्होंने सबसे पहले संध्या द्वारा सजाए गए कमरे का नजारा देखा। वहीं से उन्हें अपनी मशहूर फिल्म नवरंग बनाने का आइडिया आया।
View this post on Instagram
बच्चों को दिया भरपूर प्यार
बता दें कि अभिनेत्री ने वी शांताराम की पहली दो शादियों से हुए बच्चों को उन्होंने उतना ही प्यार दिया जैसे अपने बच्चों को दिया जाता है। संध्या उनके लिए खाना बनाती, उनकी देखभाल करती और हर समय उनका ध्यान रखती थी। बच्चों ने कई बार बताया कि संध्या ने उन्हें हमेशा अपने बच्चों की तरह अपनाया और उन्हें बिना किसी भेदभाव के प्यार दिया था। संध्या ने शादी के बाद भी उन्होंने फिल्मों में काम करना जारी रखा और पति का सहयोग किया। उनके अंतिम समय तक संध्या राजकमल स्टूडियो में ही रहीं। उनकी यादें, उनका प्यार और उनका योगदान हमेशा ही फैंस याद करते हैं।





