हिंदी सिनेमा की दुनिया में कुछ ऐसे गीतकार हुए हैं जिनके लिखे बोल आज भी ज़ुबान पर है। उन्हीं में से एक शैलेंद्र हैं। 50 और 60 के दशक में जब बॉलीवुड के गीत-संगीत का स्वर्णिम दौर माना जाता है। उस दौर में शैलेंद्र का नाम किसी भी सुपरहिट फिल्म की गारंटी बन चुका था। ‘आवारा हूं’, ‘सुहाना सफर और ये मौसम हसीं’, ‘मुड़ मुड़ के ना देख’, ‘सजन रे झूठ मत बोलो’ जैसे गीत आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं, जितने अपने समय में थे। शैलेंद्र न केवल एक गीतकार थे, बल्कि जीवन-दर्शन के कवि भी कहे जाते थे।
उनके गीतों में सरलता, गहराई और एक जादू था… जो सीधे आम आदमी के दिल को छू लेता था। यही वजह है कि उनके शब्दों की पकड़ ने उन्हें हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एक अलग मुकाम दिलाया।
आवाज का जादू
बता दें कि शैलेंद्र भोजपुरी से लेकर हिंदी तक, हर भाषा में गीत लिखते रहे। पर उनमें से एक गीत ऐसा है, जिसने भारत की सरहदें पार करके हॉलीवुड तक धमाल मचाया। यह गीत ‘मेरा जूता है जापानी’ है। राज कपूर स्टारर फिल्म श्री 420 का यह गाना भारत में तो अमर हो ही गया, लेकिन इसकी लोकप्रियता ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा। गीत को अपनी आवाज गायक मुकेश ने दी थी, जबकि संगीत शंकर-जयकिशन की जोड़ी ने तैयार किया था।
“मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंग्लिस्तानी, सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी…” इन पंक्तियों में देशभक्ति का ऐसा रंग घुला कि हर भारतीय का दिल इससे जुड़ गया। शैलेंद्र ने दिखा दिया कि चाहे इंसान दुनिया भर की चीज़ें अपना ले, लेकिन उसकी आत्मा, उसकी असली पहचान हमेशा अपने देश से जुड़ी रहती है। यही वजह रही कि यह गीत दशकों तक लोगों की जुबान पर रहा और आज भी है।
हॉलीवुड तक बनाई जगह
भारतीय गीतों का असर विदेशों में भी दिखता रहा है, लेकिन शैलेंद्र के इस गाने की कहानी कुछ अलग है। इस गाने को 61 साल बाद हॉलीवुड की ब्लॉकबस्टर सुपरहीरो फिल्म डेडपूल में जगह दी गई। साल 2016 में रिलीज हुई इस फिल्म के एक सीन में बैकग्राउंड में ‘मेरा जूता है जापानी’ बजता सुनाई दिया। एक ओर हॉलीवुड की सुपरहीरो दुनिया और दूसरी ओर भारतीय सिनेमा के सुनहरे दौर का गाना, यह भारतीय संगीत का सम्मान था। वहीं, शैलेंद्र जैसे गीतकारों की प्रतिभा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता मिली।
ऐसा रहा जीवन
शैलेंद्र का जन्म 30 अगस्त 1923 को रावलपिंडी में हुआ था। उनका असली नाम शंकरदास केसरीलाल शैलेंद्र था। रेलवे में नौकरी करते हुए उन्होंने कविताएं लिखनी शुरू कीं। कहा जाता है कि राज कपूर एक बार उनकी कविता सुनकर इतने प्रभावित हुए कि उन्हें अपनी फिल्म के लिए गीत लिखने का प्रस्ताव दिया। यही वह मोड़ था, जहां से शैलेंद्र का सफर हिंदी सिनेमा की दुनिया में शुरू हुआ।
उनकी सबसे बड़ी ताकत आम भाषा में असाधारण भाव व्यक्त करना थी। शैलेंद्र के गीत जीवन, प्रेम, संघर्ष, उम्मीद और दर्शन को सहज अंदाज़ में प्रस्तुत करते थे। उनकी पंक्तियां हर वर्ग और हर उम्र के श्रोताओं को छू जाती थीं। यही कारण है कि वे महज गीतकार नहीं, बल्कि उस दौर के एक सामाजिक कवि भी कहे जाते हैं।





