Tarak Mehta में ‘तारक मेहता’ का किरदार निभाकर घर-घर में पहचान बनाने वाले शैलेश लोढ़ा को आज हर कोई जानता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि उनकी शुरुआत एक बालकवि के रूप में हुई थी।
1981 की बात है, राजस्थान के एक छोटे से गांव में एक सांस्कृतिक मंच पर एक बच्चा निकर पहने खड़ा था हाथ में माइक और जुबान पर कविता। उसे क्या पता था कि उसका ये कविता प्रेम एक दिन उसे देश के सबसे पॉपुलर कलाकारों की कतार में खड़ा कर देगा।
कविता से जुड़ा बचपन
शैलेश लोढ़ा का जन्म राजस्थान के जोधपुर में हुआ था। उनके पापा खुद भी कवि थे, जिनसे प्रेरणा लेकर शैलेश ने महज 9 साल की उम्र में कविताएं लिखनी और मंचों पर सुनानी शुरू कर दी थीं। 1981 में उन्होंने एक स्थानीय मंच पर पहली बार कविता सुनाई और यहीं से शुरू हुई उनकी सफर की पहली लाइन।
टीवी और मंच दोनों के उस्ताद
कविता और साहित्य में माहिर होने के बावजूद शैलेश लोढ़ा ने खुद को सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रखा। ‘वाह! वाह! क्या बात है’ जैसे लोकप्रिय शो में कवियों की महफिल सजाई और फिर ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ ने उन्हें घर-घर में पहचान दिलाई। उनकी भाषा, अंदाज और गंभीर विषयों को हास्य से पेश करने की कला ने उन्हें सबका चहेता बना दिया।
साहित्यिक योगदान और सम्मान
शैलेश लोढ़ा ने कई किताबें भी लिखी है, जिनमें हास्य, व्यंग्य और कविता तीनों का संगम मिलता है। उन्हें कई राष्ट्रीय मंचों से सम्मानित भी किया गया है। उनकी लेखनी और टीवी के अनुभव दोनों ही दर्शाते हैं कि वे न सिर्फ एक कलाकार हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति और भाषा के सच्चे प्रतिनिधि भी हैं।
साधारण परिवार से सुपरस्टार बनने तक का सफर
शैलेश लोढ़ा एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता सरकारी कर्मचारी थे और मां एक घरेलू महिला। लेकिन शैलेश का झुकाव शुरू से ही साहित्य और मंच की ओर था। स्कूल की हर कवि गोष्ठी और सांस्कृतिक आयोजन में उनकी उपस्थिति ज़रूरी मानी जाती थी। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से उस माहौल में पहचान बनाई, जहाँ ज़्यादातर बच्चे पढ़ाई तक ही सीमित रहते थे।
साहित्य को आत्मा मानते हैं शैलेश
शैलेश लोढ़ा का मानना है कि मंच और कविता केवल मनोरंजन का ज़रिया नहीं, बल्कि आत्मा की आवाज़ हैं। यही वजह है कि वे अपनी कविताओं में सामाजिक मुद्दों, रिश्तों और देशभक्ति को शामिल करते हैं। उनकी कविताएं सिर्फ तुकबंदी नहीं होतीं, बल्कि सोचने पर मजबूर कर देने वाली भावनाओं से भरपूर होती हैं। वे अक्सर कहते हैं, “कविता वो नहीं जो सिर्फ तालियों के लिए लिखी जाए, कविता वो है जो ज़मीर को झकझोर दे।”
टेलीविज़न के बाद भी मंच नहीं छोड़ा
‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ जैसे पॉपुलर शो से जुड़ने के बाद भी शैलेश ने कविता मंचों को नहीं छोड़ा। वह देश-विदेश में होने वाले कवि सम्मेलनों में शिरकत करते रहे। उनकी पहचान एक ऐसे कलाकार के रूप में बनी जिसने टीवी की चमक-दमक के बीच भी साहित्य की लौ को जलाए रखा। यही उनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खूबी है कि वे कभी जड़ों से नहीं कटे।





