बॉलीवुड के ही-मैन धर्मेंद्र भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनसे जुड़ी कहानियां लोगों के दिलों में उतनी ही ताज़गी से बसती हैं, जितनी उनके जीवन के दिनों में थीं। चमकदार पर्दे पर बड़े से बड़ा सितारा बनने के बावजूद धर्मेंद्र (Dharmendra) अपने जड़ों से कभी नहीं टूटे। उनका दिल पंजाब के गांव डांगो में उतना ही बसता था, जितना मुंबई की फिल्मी दुनिया में।
लेकिन धर्मेंद्र का असली व्यक्तित्व तभी समझ आता है जब पता चलता है कि उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन बेटे सनी देओल और बॉबी देओल को नहीं, बल्कि किसी और को सौंप दी थी। वजह? उनके पिता से किया गया एक पुराने समय का वादा और परिवार की वो कड़ियां जो खून से नहीं, रिश्तों की गर्माहट से बनती हैं।
धर्मेंद्र और उनकी पुश्तैनी जमीन क्यों थी इतनी खास?
धर्मेंद्र के जीवन में उनकी पुश्तैनी जमीन सिर्फ एक टुकड़ा ज़मीन नहीं थी। यह उनके पिता, उनके बचपन, उनकी मिट्टी और उनकी जड़ों की पहचान थी।
जब भी इंटरव्यू में उनसे गांव की बात की जाती, उनका चेहरा बदल जाता एकदम नरम, भावुक और यादों से भरा। डांगो गांव की यह जमीन उनके पूर्वजों की थी, जहां बचपन की यादें, खेतों की खुशबू और गांव की मिट्टी की ताकत बसती थी। धर्मेंद्र ने कई बार कहा था कि चाहे इंसान कितनी भी ऊंचाई क्यों न छू ले, उसकी पहचान उसकी जड़ों से ही होती है। इसी जमीन से उनका भावनात्मक रिश्ता इतना गहरा था कि उन्होंने इसे संभालने की जिम्मेदारी ऐसे लोगों को दी, जिन पर उन्हें सबसे ज्यादा भरोसा था।
बेटे सनी-बॉबी को क्यों नहीं दी जमीन? असली कारण छिपा है रिश्तों की गहराई में
यह सवाल हर किसी को हैरान करता है कि आखिर धर्मेंद्र ने अपनी पुश्तैनी विरासत अपने बेटों के नाम क्यों नहीं की। हालांकि इसका जवाब बेहद सुंदर और मानवीय है। धर्मेंद्र जानते थे कि सनी और बॉबी की ज़िंदगी मुंबई में है। पंजाब की जमीन उनकी जीवनशैली और जिम्मेदारियों का हिस्सा नहीं है। दूसरी तरफ गांव में उनके चाचा के बेटे यानी उनके भतीजे हमेशा इस जमीन से जुड़े रहे। वे गांव में रहते थे, खेत संभालते थे और उसी मिट्टी को जीते थे। धर्मेंद्र के पिता ने भी कहा था कि इस जमीन को वे उन्हीं हाथों में दें, जो इसे संभाल सकें, जिन्हें इस मिट्टी से प्यार हो। यही कारण था कि धर्मेंद्र ने यह जमीन अपने भतीजों, खासकर बूटा सिंह के हिस्से में कर दी, जो आज भी इसे संभाल रहे हैं।
‘जब भी मुंबई आओ, खोया जरूर लेकर आना’ भतीजे बूटा सिंह की दिल को छूने वाली यादें
भतीजे बूटा सिंह की यादें धर्मेंद्र के व्यक्तित्व की उस सच्ची और सरल तस्वीर को सामने लाती हैं जिसे लोग कम जानते हैं। उन्होंने बताया जब धर्मेंद्र मुंबई में नया-नया बसे थे, उनके चाचा 24 घंटे की लंबी ट्रेन यात्रा करके उनसे मिलने आते थे। वे अपने हाथ का बना हुआ खोया, साग, घर की बनी रोटियां लेकर जाते। धर्मेंद्र इन चीजों को केवल खाना नहीं समझते थे ये उन्हें गांव की खुशबू, अपने बचपन और अपने पिता की याद दिलाती थीं। इसलिए वे हमेशा कहते जब भी आओ, खोया जरूर लेकर आना।
क्यों धर्मेंद्र ने भतीजों को सौंप दी पुश्तैनी जमीन?
धर्मेंद्र ने अपने पिता से वादा किया था कि वे जिस तरह अपने घर को संभालते थे, उसी तरह यह जमीन भी संभाली जाएगी। वादा सिर्फ जमीन बचाने का नहीं था बल्कि पारिवारिक रिश्ते और जड़ों को ज़िंदा रखने का था। धर्मेंद्र अच्छी तरह जानते थे कि यह काम कोई और उतनी लगन से नहीं कर सकेगा जितना उनके चाचा के बच्चे, जिन्होंने बचपन से ही इस मिट्टी की देखभाल की थी। बूटा सिंह ने कबूल किया कि धर्मेंद्र ने साफ कहा था, ये जमीन तुम्हारी है, इसे ऐसे ही संजोकर रखना जैसे मेरे पिता रखते थे।
मुंबई की चमक से दूर, लोनावला का सुकून
बॉलीवुड की दुनिया भले ही चमकदार हो, लेकिन धर्मेंद्र का मन हमेशा सरल जीवन में बसता था। इसलिए वह मुंबई के शोर-शराबे से दूर लोनावला स्थित अपने सुंदर फार्महाउस में रहना पसंद करते थे। हरे-भरे खेतों और पगडंडियों के बीच बना यह फार्महाउस उनकी जिंदगी की सबसे सुकून भरी जगहों में से एक था।
यहां वे खेती देखते, पेड़ों के बीच टहलते और अपनी पहली पत्नी प्रकाश कौर के साथ समय बिताते थे। धर्मेंद्र कहते थे कि इंसान का असली सुकून प्रकृति में मिलता है, न कि स्टूडियो की रौशनी में।





