इस नियम की वजह से अटके MP के 4.50 लाख पेंशनरों के pension, पेंशनर्स की बड़ी मांग

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भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। मध्य प्रदेश के 4.50 लाख पेंशनरों (pensioners) के महंगाई भत्ते (DA) पर मामला अभी अटका हुआ है। जिसके बाद मध्य प्रदेश के पेंशनरों ने बड़ा कदम उठाया हैं। दरअसल धारा 49 को हटाने की मांग करते हुए राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा (Vivek tankha) को ज्ञापन सौंपा है। दरअसल मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ राज्य पुनर्गठन राज्य की धारा 49 की वजह से मध्यप्रदेश के 4.50 लाख जबकि छत्तीसगढ़ के 1 लाख से अधिक पेंशनरों की पेंशन अटके हुए हैं।

लंबे समय से दोनों राज्यों के बीच फंसे पेंशनरों के महंगाई भत्ते किसी को समझाने के लिए मध्य प्रदेश के जिला शाखा अध्यक्ष एचपी उरबलिया के नेतृत्व में पेंशनरों ने राज्यसभा सांसद विवेक कुमार तन्खा को ज्ञापन सौंपा को समाप्त करवाने की मांग की है। मध्य प्रदेश के पेंशनरों द्वारा कहा गया है कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विभाजन को 21 साल हो चुके हैं। इसके बावजूद दोनों राज्यों के पुनर्गठन अधिनियम की धारा 49 आज भी अस्तित्व में है और इस वजह से मध्यप्रदेश के 4.50 लाख के महंगाई भत्ते की राशि का भुगतान करने के लिए एक राज्य से दूसरे राज्य की अनुमति लेनी आवश्यक होती है।

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पेंशनरों का यह भी कहना है कि राज्य शासन द्वारा कर्मचारियों को 8% महंगाई भत्ते की राशि का भुगतान का आदेश दिया गया है लेकिन यह पेंशनरों के महंगाई भत्ते पर भी लागू होने के बावजूद उन्हें उपलब्ध नहीं कराई गई है। इतना ही नहीं मध्य प्रदेश के पेंशनरों द्वारा मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ पुनर्गठन अधिनियम की धारा 49 को खत्म करने की मांग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी की गई है।

पेंशनर्स एसोसिएशन ने मांग की है कि उन्हें डीए (महंगाई भत्ता) और उसका बकाया तुरंत दिया जाए। मध्यप्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 की धारा 49 का हवाला देते हुए पेंशनभोगियों के महंगाई भत्ते में वृद्धि नहीं की गई है। अधिकारियों का कहना है कि इसे छत्तीसगढ़ सरकार से भी मंजूरी लेने की जरूरत है। यह बहाना हास्यास्पद लगता है। वरिष्ठ नागरिकों को तुरंत राहत दी जानी चाहिए।

मध्यप्रदेश के उन 4.50 लाख से अधिक पेंशनभोगियों को तत्काल राहत देने की मांग की है, जिन्हें बढ़ा हुआ डीए (महंगाई भत्ता) और उसका बकाया नहीं दिया गया है। दरअसल सरकारी कर्मचारियों के डीए में 16% के बजाय केवल 8% की वृद्धि की गई, जबकि 4.50 लाख पेंशनभोगियों को तकनीकी कारणों का हवाला देते हुए उनके अधिकार से वंचित किया गया।


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Kashish Trivedi

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