भक्ति आखिरी शराब- जिसके आगे कोई नशा नहीं !

Manisha Kumari Pandey
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भोपाल , डेस्क रिपोर्ट । भक्ति,जीवन की आखिरी शराब है , एक ऐसी कि जिसका नशा सुबह उतरता नहीं अपितु भोर से चढ़ना शुरू होता है व जो शाम आते-आते शबाब पर होता है। कारण यह है भक्ति परम प्रेम रूपा है, याद कीजिएगा जब आप प्रेम में होते हैं तो कितने खुश रहतें हैं । हमेशा अपने दिलबर की चाह में खोए रहते हैं । समय तक का पता नहीं चलता है ।
बिना प्रेम के भक्ति सिर्फ़ एक पाखंड है । जिसप्रकार के कर्मकांड के कोई परिणाम नहीं आते अपितु मन में निराशा जरूर आती है क्योंकि उसमें प्रेम नहीं है । प्रेम में मॉंग समाप्त होकर सिर्फ़ समर्पण का भाव ही रहता है ।मेरे कुछ परिचित सवाल करते हैं कि हम इतने दिनों से यह उपवास/ व्रत कर रहें हैं फिर भी हमारा यह काम नहीं हो रहा है । मैं उन्हें जबाब देता हूँ कि आप कर्मकांड कर रहे हो , प्रभु की भक्ति नहीं । आज लोगों के पास कितना ही धन, पद, प्रतिष्ठा है पर तृप्ति नहीं है क्योंकि वे भक्ति रस का पान नहीं कर रहें हैं, और ऐसे लोगों को बोतल भर शराब पीने के बाद भी चैन की नींद नहीं आ रही है ।
पूजा-आराधना की पद्धतियाँ कर्मकांड हैं यदि हम उसमें अपने भाव( प्रेम) जगा लें तो ही कृपा संभव है अन्यथा समय की बर्बादी के सिवाय कुछ भी नहीं है ।कई बार इन्हीं कर्मकांड के चलते श्रद्धा,अश्रद्धा में परिवर्तित हो जाती है और परमात्मा से आपका मन उचट जाता है । हमें अपनी गलती पता ही नहीं चलती , कि हमनें बिना गहरे समर्पण के, बिना निष्काम प्रेम के जो व्रत, उपवास या जाप , हवन किया है उसका कोई परिणाम कैसे आएगा ?
आजकल हो क्या रहा है – हे हनुमान जी मैं 21 मंगलवार कर रहा हूँ , प्रभु मेरी ये मनौती पूरी कर देना । या मैं सोलह सोमवार का व्रत कर रही हूँ- मुझे बढिया पति मिल जाए, या मिल गया है तो लड़का हो जाए और पता लगा लड़की हो गयी तो फिर भगवान को दोष शुरू ।
आप समझ ही नहीं रहें हैं कि यह भक्ति नहीं परमात्मा से व्यापार हुआ ।भक्ति हमेशा परम प्रेम ,श्रद्धा और गहरे समर्पण की मॉंग करती है ।
हॉं एक सावधानी और रखिए जब आप प्रार्थना में रहो तो यह ध्यान रहे कि सबकुछ प्रभु कर रहें हैं, आपने अपने जीवन का सब भार उन्हीं पर छोड़ रखा है । और जब भौतिक जीवन में कर्म करने बाहर निकलें तो यह ध्यान रहे की सब कुछ आपको करना है। प्रभु आपको बेहतर बुद्धि अवश्य दे सकते हैं, जीवन संग्राम आपको ही लड़ना है । अन्यथा कब आपकी श्रद्धा, अश्रद्धा में बदल जाएगी पता ही नहीं चलेगा । और पता चला कि पहली शराब आपके प्याले में भर गयी है ।इसलिए सावधान हो जाइए और भक्ति रूपी आखिरी शराब के मजे लीजिए ।

लेखक:- नागेश्वर सोनकेसरी


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