हमारे त्यौहार सांस्कृतिक एकता की सबसे बड़ी धरोहर हैं – प्रवीण कक्कड़

भोपाल, प्रवीण कक्कड़ इन दिनों पूरा भारत त्यौहार (festivals ) के रंग में डूबा हुआ है। करीब 2 साल बाद कोरोना (corona) का जोर कुछ कम हुआ और लोग सामूहिक कार्यक्रमों में शामिल हो पा रहे हैं। नवरात्रि (navratri 2021) में माता दुर्गा (maa durga) की प्रतिमाओं की स्थापना हुई और 9 दिन तक अनुष्ठानपूर्वक माता की आराधना की गई। दसवें दिन विजयादशमी (vijayadashmi) का पर्व आ गया और रावण के पुतला दहन में भी लोगों ने काफी उत्साह से भाग लिया। त्योहारों के इसी क्रम में जल्द ही ईद मिलाद उन नबी, वाल्मीकि जयंती और दीपावली (Deepawali 2021) भी आने वाली हैं। इन सारे त्योहारों का हमारे जीवन में बहुत गहरा महत्व है। यह सारे त्यौहार हमारी सभ्यता और संस्कृति में इस तरह से रचे बसे हैं कि असल में इन्हीं के माध्यम से समरस समाज का निर्माण होता है।

सामान्य दिनों में तो हमारे भीतर उत्साह तभी आता है जब हम अपने परिवारजनों के साथ या मित्रों के साथ हंसते मुस्कुराते हैं, लेकिन त्योहार एक ऐसा वातावरण पूरे भारत को देते हैं जिसमें सहज रूप से सभी के भीतर उल्लास छा जाता है। समस्त मानव जाति पर एक साथ उल्लास जाने के इसी भाव को भारतीय दर्शन में प्रमोद भाव कहा गया है। नवरात्रि की समाप्ति पर जब प्रतिमाओं का विसर्जन होता है तो ढोल नगाड़े के साथ नौजवान और नवयुवतियां दुर्गा जी की प्रतिमा का विसर्जन करने नियत स्थान पर जाते हैं।


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Kashish Trivedi

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