पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के अंतिम संस्कार में राजकीय सम्मान न मिलने को लेकर कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। हुड्डा ने लोकसभा में यह मुद्दा जोर-शोर से उठाया और कहा कि यह केवल प्रोटोकॉल की अनदेखी नहीं, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति के योगदान का अपमान है, जिसने कई राज्यों में राज्यपाल के रूप में सेवा दी।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी लिखा
कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा और कहा कि- “आज मैंने पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक जी को उनके अंतिम संस्कार के दौरान सरकार की तरफ से मिलने वाले राजकीय सम्मान न देने का मुद्दा देश की सबसे बड़ी पंचायत में उठाया। दुख की बात है कि बीजेपी सरकार ने इसे सुनकर भी अनसुना कर दिया।”
संसद में श्रद्धांजलि और मौन
5 अगस्त को निधन के बाद लोकसभा में स्पीकर ओम बिरला ने सत्यपाल मलिक के जीवन और योगदान को याद किया। उन्होंने शोक संदेश पढ़ते हुए कहा- “सत्यपाल मलिक का निधन 79 वर्ष की आयु में 5 अगस्त 2025 को नई दिल्ली में हुआ। यह सभा उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त करती है और परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त करती है।” इसके बाद सदन में मौजूद सभी सांसदों ने दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। श्रद्धांजलि के तुरंत बाद दीपेंद्र हुड्डा ने खड़े होकर राजकीय सम्मान न मिलने का मुद्दा रखा, जिस पर सरकार की ओर से तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई।
राजनीतिक और प्रशासनिक करियर
चौधरी सत्यपाल सिंह मलिक का जन्म उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में हुआ था। वे एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते थे और छात्र राजनीति से अपने करियर की शुरुआत की थी। राजनीति में सक्रिय रहते हुए उन्होंने लोकसभा और राज्यसभा दोनों में सांसद के रूप में कार्य किया। बाद में उन्हें कई राज्यों में राज्यपाल की जिम्मेदारी मिली। सत्यपाल मलिक जम्मू-कश्मीर में अंतिम पूर्णकालिक राज्यपाल की भूमिका निभाई, इसके अलावा मेघालय, गोवा, बिहार में भी राज्यपाल के पद रहे। जम्मू-कश्मीर में उनके कार्यकाल के दौरान ही राज्य का विशेष दर्जा समाप्त कर अनुच्छेद 370 हटाया गया था। इस फैसले में उनकी भूमिका को लेकर वे लंबे समय तक चर्चा में रहे।
निधन और विवाद
5 अगस्त 2025 को दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उनका निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार थे और डॉक्टरों की देखरेख में इलाज चल रहा था। अंतिम संस्कार उनके पैतृक स्थान पर किया गया, लेकिन इस दौरान उन्हें पूर्व राज्यपाल के रूप में मिलने वाला राजकीय सम्मान नहीं दिया गया। इसी को लेकर विपक्ष ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि यह लोकतांत्रिक परंपराओं और संवैधानिक पद की गरिमा के खिलाफ है। हुड्डा का कहना है कि- यह केवल सत्यपाल मलिक का मामला नहीं है, बल्कि यह देश की लोकतांत्रिक और संवैधानिक परंपराओं के पालन का सवाल है।”
सत्यपाल मलिक का राजनीतिक जीवन और उनके द्वारा निभाए गए संवैधानिक पद भारत की राजनीति में अहम स्थान रखते हैं। लेकिन उनके अंतिम संस्कार में राजकीय सम्मान न मिलने से एक नया विवाद खड़ा हो गया है। अब यह देखना होगा कि विपक्ष के सवालों का सरकार किस तरह से जवाब देती है।





