हरियाणा और पंजाब के बीच पानी को लेकर पुराना विवाद एक बार फिर उभरकर सामने आ गया है। इस बार हरियाणा सरकार द्वारा भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (BBMB) और पंजाब सरकार को भेजे गए पत्र ने इस बहस को और तेज कर दिया है। हरियाणा ने पत्र में यह मांग की है कि पंजाब की ओर से छोड़ा जा रहा पानी अब कम किया जाए क्योंकि बारिश के चलते पानी की ज़रूरत घट गई है। यह लेटर दो राज्यों के बीच फिर से तनाव का कारण बन गया है।
हरियाणा ने मांगा कम पानी, दिया बारिश का हवाला
हरियाणा सरकार ने अप्रैल में पंजाब से ज्यादा पानी की मांग की थी, लेकिन अब मौसम के बदलते हालात को देखते हुए सरकार ने खुद ही पानी कम करने की मांग की है। शुक्रवार को हरियाणा कॉन्टैक्ट पॉइंट पर 8894 क्यूसेक पानी डिस्चार्ज किया गया, जबकि हरियाणा ने केवल 7900 क्यूसेक की जरूरत बताई थी। अब नए पत्र में हरियाणा सरकार ने 6250 क्यूसेक पानी की मांग की है। इसका कारण है पिछले सप्ताहों में हुई भारी बारिश, जिससे पानी की आपूर्ति की ज़रूरत काफी कम हो गई है।
मॉनसून से पहले तैयारी, अब बाढ़ का खतरा नहीं
अधिकारियों ने बताया कि पिछले एक हफ्ते में अच्छी बारिश हुई है, लेकिन फिर भी किसी इलाके में बड़ा नुकसान नहीं हुआ है। इसका कारण है पहले से की गई तैयारी। हरियाणा और चंडीगढ़ प्रशासन के अधिकारियों ने ओझा के नेतृत्व में सुखना चो, किशनगढ़, मनीमाजरा, बापूधाम, रायपुर कलां और सुखना झील जैसे संवेदनशील इलाकों का निरीक्षण किया। रिपोर्ट के अनुसार, इन इलाकों में जलभराव या बाढ़ जैसी स्थिति नहीं बनी, जो एक राहत की बात है।
सुखना झील में 24 घंटे सक्रिय कंट्रोल रूम
सुखना झील में बनाए गए कंट्रोल रूम से पूरे जलस्तर की निगरानी की जा रही है। यह कंट्रोल रूम 24 घंटे खुला रहता है और यहीं से पंजाब और हरियाणा के बीच समन्वय बनाए रखने की कोशिश की जाती है। अधिकारियों ने कंट्रोल रूम का दौरा किया और वहां की तैयारियों की समीक्षा की। बताया गया कि अतिरिक्त पानी निकालने के लिए सुखना झील के गेट समय पर खोल दिए गए थे, जिससे पानी की निकासी सुचारु रूप से हो सकी।
विवाद की जड़: पानी बंटवारे की पुरानी लड़ाई
पंजाब और हरियाणा के बीच पानी बंटवारे को लेकर वर्षों से विवाद चल रहा है। चाहे एसवाईएल नहर का मुद्दा हो या भाखड़ा डैम से पानी की सप्लाई, दोनों राज्यों में अक्सर टकराव की स्थिति बनी रहती है। ताज़ा मामला भी उसी विवाद की एक कड़ी है। हालांकि दोनों राज्यों के अधिकारी तकनीकी स्तर पर तालमेल बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन राजनीतिक बयानबाज़ी और क्षेत्रीय हितों के टकराव के कारण यह मुद्दा बार-बार उभर आता है।





