एक बार फिर हरियाणा में पशुओं में लंपी स्किन डिज़ीज़ संक्रमण का खतरा बढ़ गया है। दरअसल हिसार की लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय द्वारा पशुपालकों के लिए एडवाइजरी जारी की गई है। वहीं लुवास विश्वविद्यालय के पशु चिकित्सा जन स्वास्थ्य एवं महामारी विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. राजेश खुराना ने जानकारी देते हुए बताया कि विशेषज्ञों की टीम लंपी संक्रमण को लेकर फील्ड में सक्रिय है और काम कर रही है। प्रभावित क्षेत्रों में लगातार पशुओं की जांच की जा रही है और जरूरी उपचार सुनिश्चित किया जा रहा है।
जानकारी दे दें कि लंपी स्किन डिज़ीज़ एक वायरस जनित संक्रमण रोग कहलाता है। यह रोग पॉक्स वायरस से फैलता है। WHO की ओर से भी इस संक्रमण को नोटिफायएबल ट्रांस-बाउंड्री डिज़ीज़ में रखा गया है। दरअसल यह रोग मच्छर, मक्खी एवं कीट जैसे कीड़ों द्वारा तेजी से फैलता है। इसके अलावा यह रोग संक्रमित पशु से संपर्क में आने पर भी फैलता है।
संक्रमित पशु से मनुष्य में नहीं फैलती
हालांकि यह इंसानों में फैलने वाली बीमारी नहीं है। यह बीमारी संक्रमित पशु से मनुष्य में नहीं फैलती। यह जोनोटिक बीमारी नहीं है। पशुपालक अगर इस बीमारी के बारे में और अधिक जानकारी चाहते हैं तो उन्हें लुवास विश्वविद्यालय हिसार से संपर्क करना चाहिए। लुवास विश्वविद्यालय की ओर से लंपी वायरस के लिए पशुपालकों को सलाह दी गई है कि बीमार पशु को तुरंत अलग बाड़े में रख दें और आइसोलेशन की प्रक्रिया अपनाएं। इसके अलावा पशुओं के लिए मच्छरदानी का भी उपयोग करें। पशुओं के बाड़े को स्वच्छ, सूखा और हवादार बनाए रखें। इसके अलावा नियमित रूप से मच्छर-मक्खी रोधी रसायन का छिड़काव करें और देसी जुगाड़ में सबसे अच्छा तरीका नीम की पत्तियों और गुग्गल का धुआं करना भी है, यह बेहद प्रभावी माना गया है।
पशुपालक इन चीज़ों का रखें ध्यान
इसके अलावा इस बीमारी से पशुओं को बचाने के लिए फिटकरी या लाल दवा 0.1% से दिन में दो बार लगाएं। याद रखें कि घाव पर पानी न लगे और न ही पशुओं को इस पर जाने दें। निगरानी रखें कि पशुओं के घाव में कीड़े न पड़ें। पशुओं को पौष्टिक आहार खिलाएं और स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराएं। पशुपालकों को सबसे ज्यादा सावधानी बीमार पशु को छूने के बाद रखनी चाहिए। याद रखें कि बीमार पशु को छूने के बाद स्वस्थ पशु के पास न जाएं। संपर्क होने के बाद साबुन से हाथ धोने के बाद ही दूसरे और स्वस्थ पशु को छुएं। दरअसल पशु विज्ञान विभाग ने जानकारी दी है कि बीमार पशु का उपचार केवल नजदीकी पशु चिकित्सालय या औषालय की सलाह से ही करवाएं। जो पशु इस बीमारी से पीड़ित हो चुके हैं उन्हें द्वितीयक और जारी लक्षणों का उपचार कराने के लिए विशेषज्ञ चिकित्सक की सलाह लें।





