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Wed, Dec 17, 2025

विकास बराला की AAG नियुक्ति रद्द, 2017 के आरोपों ने बढ़ाई विवाद की आग, सैनी सरकार ने हटाया

Written by:Vijay Choudhary
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वहीं दूसरी ओर यह सवाल भी खड़ा हो गया है कि ऐसी नियुक्तियां किस आधार पर की जा रही हैं और क्या शासन व्यवस्था सिफारिशों के दबाव में है?
विकास बराला की AAG नियुक्ति रद्द, 2017 के आरोपों ने बढ़ाई विवाद की आग, सैनी सरकार ने हटाया

विकास बराला

हरियाणा सरकार ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद सुभाष बराला के बेटे विकास बराला की असिस्टेंट एडवोकेट जनरल (AAG) के पद पर की गई नियुक्ति को लेकर बड़ा फैसला लेते हुए नाम वापस ले लिया है। नियुक्ति के महज 10 दिन बाद, 18 जुलाई को जारी अधिसूचना को प्रतिक्रिया स्वरूप रद्द कर दिया गया। इस निर्णय के पीछे मुख्य वजह 2017 का वह विवादास्पद मामला बताया जा रहा है, जिसमें विकास बराला पर एक IAS अधिकारी की बेटी का पीछा करने और अपहरण की कोशिश का आरोप लगा था। उस समय इस केस ने राष्ट्रीय मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरी थीं, और विकास को उनके साथी के साथ गिरफ्तार भी किया गया था।

IAS बेटी के पीछा और अपहरण का आरोप

विकास बराला की नियुक्ति के तुरंत बाद यह मामला एक बार फिर चर्चा में आ गया। चंडीगढ़ में 2017 में एक घटना के दौरान एक IAS अधिकारी की बेटी ने शिकायत दर्ज कराई थी कि एक गाड़ी ने उसका पीछा किया, और जबरन अपहरण की कोशिश की गई। शिकायत में विकास बराला और उनके साथी का नाम था, और FIR दर्ज कर उन्हें हिरासत में लिया गया था। मामले की गंभीरता को देखते हुए विकास के पिता को उस समय पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पद से हटना पड़ा था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पुलिस जांच में विकास ने गुनाह कबूल किया था, हालांकि मामला अभी भी अदालत में लंबित है। ऐसे में जब उनकी AAG के रूप में नियुक्ति हुई, तो विपक्ष और नागरिक समाज ने सवाल उठाने शुरू कर दिए कि एक आरोपी व्यक्ति को राज्य की ओर से कानूनी प्रतिनिधि कैसे बनाया जा सकता है।

विधायकों और विपक्षी दलों का फूटा आक्रोश

विकास बराला की नियुक्ति पर इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) सहित विपक्षी दलों ने जोरदार विरोध जताया। INLD विधायक आदित्य देवीलाल ने सरकार की नीयत और प्रणाली पर सवाल खड़े करते हुए कहा- “क्या कोई ऐसा व्यक्ति जो खुद अदालत में ट्रायल फेस कर रहा हो, वह राज्य की ओर से न्यायिक पक्ष रख सकता है? यह न्याय प्रणाली का मज़ाक है और बीजेपी की राजनीतिक सिफारिश संस्कृति का शर्मनाक उदाहरण है।” उन्होंने यह भी कहा कि “तीन हजार से ज्यादा योग्य अभ्यर्थियों को दरकिनार कर विकास बराला जैसे व्यक्ति को नियुक्त करना न केवल अन्याय है बल्कि पूरे प्रक्रिया पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।” उन्होंने मुख्यमंत्री से सीधा जवाब मांगते हुए कहा कि यदि नियुक्ति पहले से तय थी, तो फिर आवेदन प्रक्रिया का नाटक क्यों किया गया?

जनदबाव के बाद नाम लिया वापस

लगातार बढ़ते जनविरोध और मीडिया कवरेज के बीच हरियाणा सरकार पर दबाव बढ़ता गया। अंततः सरकार ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए 18 जुलाई को जारी अधिसूचना को निरस्त कर दिया। सूत्रों के अनुसार, सरकार ने अब विकास बराला को AAG की सूची से औपचारिक रूप से हटा दिया है, और उनकी कानूनी सेवा दिल्ली स्थित हरियाणा लीगल सेल में नहीं ली जाएगी। यह फैसला जहां एक ओर लोकतांत्रिक जनदबाव की जीत माना जा रहा है, वहीं दूसरी ओर यह सवाल भी खड़ा हो गया है कि ऐसी नियुक्तियां किस आधार पर की जा रही हैं और क्या शासन व्यवस्था सिफारिशों के दबाव में है?