भोपाल| मतगणना का समय नजदीक आते ही प्रत्याशियों की धड़कनें तेज हो गई, पार्टी के दिग्गज नेताओं में बेचैनी साफ़ देखी जा सकती है| वहीं सभी अपनी जीत का दावा कर रहे है| इस बीच बागी होकर बीजेपी की मुश्किलें बढ़ाने वाले निर्दलीय प्रत्याशी और वरिष्ठ नेता पूर्व कृषि मंत्री डॉ रामकृष्ण कुसमरिया का बड़ा बयान सामने आया है| उन्होंने कहा है कि सरकार किसी भी बने, लेकिन ये तय है कि बिना निर्दलीयों के सहयोग के किसी की भी सरकार नहीं बनेगी। उनके बयान से भाजपा और कांग्रेस में हलचल है, क्यूंकि अगर दोनों ही पार्टियों को बहुमत नहीं मिलता है तो निर्दलीयों को साधा जाएगा, दोनों ही पार्टियों ने इस स्तिथि के लिए अपनी रणनीति बना ली है, पूर्व मंत्री कुसमरिया के बयान के बाद चर्चा शुरू हो गई है कि ऐसी स्तिथि में कुसमरिया किसके साथ खड़े होंगे|
दरअसल, रविवार को हटा में पूर्व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जगमोहन श्रीवास्तव के घर उनकी सेहत का हाल जानने पहुंचे डॉ. कुसमरिया ने चर्चा में कहा कि उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में दमोह और पथरिया विधानसभा से इसलिए चुनाव लड़ा, क्योंकि वह भाजपा की तानाशाह नीतियों को और नेताओं को जवाब देना चाहते थे। उन्होंने कहा कि सरकार किसी भी बने, लेकिन ये तय है कि बिना निर्दलीयों के सहयोग के किसी की भी सरकार नहीं बनेगी। कुसमरिया के इस बयान के बाद भाजपा और कांग्रेस में हलचल है, अगर ऐसी स्तिथि बनती है तो कांग्रेस इसका लाभ लेना चाहेगी| वहीं बीजेपी एक बार फिर कुसमरिया को मानाने की कोशिश कर सकती है|
बता दें कि बुंदेलखंड की राजनीति में बाबाजी के नाम से पहचाने जाने वाले रामकृष्ण कुसमरिया बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे| लेकिन इस बार टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर उन्होंने पार्टी के खिलाफ दो सीटों से चुनाव लड़ा है| अंतिम समय तक उन्हें मानाने की कोशिश की गई| लेकिन बाबाजी नहीं माने| कुसमरिया को भी पिछले चुनाव में मंत्री रहते हुए राजनगर सीट से हार का सामना करना पड़ा था. उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी विक्रम सिंह ने 8607 मतों से हराया था| पांच बार के सांसद और दो बार विधायक रहे कुसमरिया इस बार दमोह और पथरिया सीट से निर्दलीय चुनावी मैदान में हैं| कुसमरिया ने टिकट ना मिलने पर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में वित्त मंत्री जयंत मलैया के खिलाफ चुनाव लड़ा और उनकी स्तिथि मजबूत मानी जा रही है| दमोह जिले की चारों विधानसभाओं में भाजपा और कांग्रेस दोनों से बागी नेताओं ने निर्दलीय चुनाव लड़ा है, जिसमें से कुछ की स्थिति बेहतर है।