दिग्विजय सिंह ने शेयर की कविता, कविता में जीवन का फ़लसफ़ा ‘ये हार एक विराम है, जीवन महासंग्राम है’

लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस के दिग्गज नेता ने सुप्रसिद्ध कवि शिवमंगल सिंह सुमन की एक कविता साझा की है। इसके ज़रिए उन्होंने अपना मंतव्य भी स्पष्ट कर दिया है। कवि ने अपनी कविता में 'हार' को एक छोटा सा पड़ाव बताया है और कहा है कि इससे निराश नहीं होना चाहिए।

Digvijaya Singh

Digvijaya Singh shared a poem : पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह को राजगढ़ से चुनाव हार चुके हैं। उन्हें बीजेपी के रोडमल नागर ने भारी अंतर से हराया। नतीजे आने के बाद दिग्विजय सिंह ने अपने क्षेत्र की जनता का आभार जताया था और कहा था कि जिन्होंने भी उन्हें वोट दिए वो उन सबको धन्यवाद देते हैं। अब उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर सुप्रसिद्ध कवि शिवमंगल सिंह सुमन की एक कविता साझा की है जिसमें कवि ने जीवन का दर्शन बताया है।

लोकसभा चुनाव हारने के बाद कविता के माध्यम से कही अपनी बात

मध्य प्रदेश में कांग्रेस को बुरी तरह निराशा मिली है। यहाँ सभी 29 लोकसभा सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की है। इस तरह उसने अपनी एकमात्र छिंदवाड़ा सीट भी गंवा दी। इसी के साथ दिग्विजय सिंह जैसे वरिष्ठ नेता की हार पार्टी के लिए करारा झटका है। इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनावों में भी उन्हें भोपाल में शिकस्त का सामना करना पड़ा था। दिग्विजय सिंह कह चुके हैं कि इस बार उन्होंने अपने जीवन का आख़िरी चुनाव लड़ा है और इस आख़िरी चुनाव में मिली हार उनके साथ-साथ पूरी पार्टी के लिए किसी झटके से कम नहीं।

शिवमंगल सिंह सुमन की कविता साझा की

अब दिग्विजय सिंह ने अपने एक्स अकाउंट से एक कविता शेयर की है। शिवमंगल सिंह सुमन की इस कविता में जीवन का फ़लसफ़ा बताया गया है। ये शुरु ही इन पंक्तियों के साथ होती है ‘यह हार एक विराम है..जीवन महासंग्राम है’। इस तरह दिग्विजय सिंह ने कवि के माध्यम से अपना मंतव्य भी ज़ाहिर कर है। कविता के ज़रिए उन्होंने बता दिया है कि भले ही वे चुनाव हार गए हैं, लेकिन मन से नहीं हारे है। आइये पढ़ते हैं वो कविता जो दिग्विजय सिंह ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर की है।

यह हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

स्‍मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्‍व की संपत्ति चाहूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

क्‍या हार में क्‍या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संधर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

लघुता न अब मेरी छुओ
तुम हो महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना मैं व्‍यर्थ त्‍यागूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्तव्‍य पथ से किंतु भागूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

– शिवमंगल सिंह ‘सुमन


About Author
श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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