अफसरों द्वारा अपने-अपने स्तर पर राज्य के अलग-अलग स्तर से फीडबैक भी लिया जा रहा है कि कहां किस दल के पक्ष में ज्याद मतदान हुआ है। मतदान के अगले दिन गुुरुवार को राज्य मंत्रायल में एक दर्जन करीब अफसरों से अलग-अलग समय में मुलाकात के दौरान सिर्फ चुनावी चर्चा रही। कई अफसरों ने अपना अपने स्तर पर लिए गए चुनावी फीडबैक को बताया। कोई नए सरकार बनने का दावा कर रहा तो किसी ने मौजूदा सरकार के ही वापसी के समीकरण बताए। हालांकि कोई भी अधिकार किसी भी दल के पक्ष मेंं खुलकर नहीं बोल पा रहे थे।
अफसरों का नहीं हो रहा टाइम पास
आचार संहिता लागू होने के बाद से ज्यादातर विभागों में कोई काम नहीं है। प्रमुख सचिव स्तर के अफसरों के पास इक्का-दुक्का फाइलें ही पहुंच रही हैं। सामान्य प्रशासन, गृह, नगरीय प्रशासन विभाग को छोड़कर किसी भी विभाग के पास ज्यादा काम नहीं है। ऐसे में अधिकारियों का मंत्रालय में समय पास ही नहीं हो रहा है। मतदान के अगले दिन 29 नवंबर को मंत्रालय में ज्यादा संख्या में अफसर दिखे। एक अफसर के कक्ष में कुछ अन्य अफसर भी बैठे देखे गए। उनके बीच विकास या विभाग की किसी योजना पर चर्चा नहीं हो रही, वे सिर्फ चुनाव को लेकर चर्चा कर रहे थे। अफसरों के बीच चर्चा का प्रमुख विषय यही था कि राज्य में इस बार सरकार किसकी बन रही है।
मैदानी अफसरों से ले रहे फीडबैक
मंत्रालय के आला अधिकारी मैदानी अफसरों से भी फीडबैक लेते देखे गए। आला अधिकारी जिला कलेक्टर या अन्य अफसरों से सामान्य चर्चा के साथ-साथ उनके जिलों में मतदान का फीडबैक लेते सुने गए। हालांकि अफसरों के बीच खुलकर कोई चर्चा नहीं हो रही थी। न अफसरों ने खुलकर ये पूछा कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन रही है या भाजपा सरकार बना रही है। जवाब में भी अफसरों ने यही कहा कि जनता का मूढ़ समझ नहीं आ रहा है। लेकिन मतदान में खूब बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है।
बदलाव के पक्ष में ज्यादातर अफसर
मंत्रालय में ज्यादातर अफसर प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के पक्ष में है। इनमें से कुछ अफसरों ने व्यक्तिगत तौर पर बताया कि पिछले कुछ सालों से सरकार में हर तरह के फैसले गिने-चुने ही अफसर ले रहे हैं। ये अफसर राज्य में जबरन अपने फैसले थोप रहे हैं। यदि सत्ता परिवर्तन होता है तो प्रदेश को विकास की नई दिशा मिलेगी। पिछले कुछ सालों में मप्र विकास की दिशा से भटक सा गया है। प्रशासन में गिने-चुके अफसरों की चलती है। उनकी मर्जी से ही जिलों में प्रशासनिक जमावट होती है। जिसका असर प्रदेश के विकास पर पड़ता है।