भोपाल| भाजपा ने लोकसभा चुनाव के लिए मध्य प्रदेश की 24 सीटों पर प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया है| पांच सीटों पर अब तक फैसला नहीं हो पाया है| जिनमे इंदौर भोपाल पर भारी कश्मकश देखने को मिल रही है तो वहीं गुना-शिवपुरी संसदीय सीट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया का सामना कौन करेगा इसको लेकर भी पेंच फंसा हुआ है| भाजपा लोकल नेता को ही उम्मीदवार बनाना चाहती है, लेकिन कोई बड़ा नेता सिंधिया के सामने उतरने में रूचि नहीं दिखा रहा है| संभावित उम्मीदवार में केपी यादव का नाम तो चला, लेकिन विरोध के स्वर भी फूट पड़े हैं|
मुंगावली उपचुनाव के दौरान कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए केपी यादव को पार्टी ने चार माह पहले विधानसभा चुनाव में मुंगावली से प्रत्याशी बनाया था, लेकिन वो हार गए| हालांकि उनकी हार का अंतर् कम था| कभी सिंधिया के सांसद प्रतिनिधि रहे केपी यादाव को बीजेपी सिंधिया के खिलाफ इस्तेमाल करना चाहती है यही कारण है उनका नाम तेजी से आगे आया| हालाँकि विरोध भी शुरू हो गया है| अशोकनगर जिले के कद्दावर नेता रहे पूर्व विधायक स्व. देशराज सिंह यादव के परिजनों ने विरोध दर्ज कराया है। उन्हाेंने प्रेसवार्ता कर मुंगावली उपचुनाव में कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा में शामिल हुए केपी यादव को प्रत्याशी बनाए जाने पर आपत्ति दर्ज कराई और चेतावनी दी है कि अगर पार्टी उन्हें प्रत्याशी बनाती है तो राव परिवार के सदस्य अपने समर्थकों के साथ इस्तीफा दे देंगे। पूर्व विधायक स्व. देशराज सिंह यादव के छोटे बेटे मंडी अध्यक्ष अजय यादव ने कहा कि कांग्रेस से एक साल पहले आए कार्यकर्ता को प्रत्याशी बनाया जा रहा है, जबकि पार्टी का डंडा झंडा उठाने वाले 20 से 25 साल पुराने कार्यकर्ताओं को अवसर ही नहीं दिया जा रहा। तीनों जिलों में पार्टी को मजबूत प्रत्याशी नहीं मिल रहा जो कांग्रेस से आए कार्यकर्ता को प्रत्याशी बनाया जा रहा। अगर पार्टी ऐसा करती है तो जिपं अध्यक्ष, मंडी अध्यक्ष अपने हजारों समर्थकों के साथ पार्टी से इस्तीफा दे देंगे।
भाजपा का हर प्रयोग फेल, सिंधिया का सामना कौन करे
सिंधिया राजपरिवार के गहरे प्रभाव वाली गुना-शिवपुरी सीट भारतीय जनता पार्टी को 1999 से जीत का इंतजार है। 1989 से 1999 तक यहां भाजपा के टिकट से राजमाता विजयाराजे सिंधिया काबिज रहीं, उसके बाद माधवराव सिंधिया फिर उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया इस सीट पर काबिज हैं। इस बार भी कांग्रेस ने सिंधिया को ही प्रत्याशी बनाया है| 2001 में सांसद माधवराव सिंधिया की एक दुर्घटना में हुई मौत के बाद से उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया इस सीट पर आ गए थे। हर बार भाजपा नया प्रयोग करने का प्रयास करती है, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली है। पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद भी भाजपा सिंधिया को परास्त नहीं कर पाई| इस बार स्थानीय नेताओं की मांग उठी है। लेकिन कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो सिंधिया का सामना कर सके| जिसके चलते लगातार मंथन चल रहा है| कांग्रेस से इस सीट को कब्जे में वापस लेने भाजपा ने उप चुनाव -2002 में राव देशराज सिंह को चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन करारी शिकस्त खाई। 2004 में हरिवल्लभ शुक्ला, 2009 में नरोत्तम मिश्रा, 2014 में जयभानसिंह पवैया जैसे दिग्गज नेता को भी भाजपा ने दांव पर लगाया, लेकिन सफलता नहीं मिली|