इंदौर, आकाश धोलपुरे। कोरोना के रडार पर बैठे इंदौर (Indore) में फिर कोरोना ब्लास्ट हुआ है। शुक्रवार को फिर से कोरोना संक्रमण (Corona Infection) के 445 नये केस सामने आए है। वही 7 लोग कोविड से जंग में अपना जीवन हार चुके है। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. प्रवीण जड़िया (Dr. Praveen Jadiya) द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक इंदौर में अब तक कुल 22129 पॉजिटिव केस हो गए है जिनमे से 17625 लोग ठीक हो चुके है और 3966 मरीजो का इलाज जारी है। वही अब तक कुल 538 मरीजो की मौत हो चुकी है।
सरकारी आंकड़ो के अनुसार इंदौर में सितंबर माह की 25 तारीख के पहले 8 दिनों में 200 से ज्यादा मरीज हर रोज सामने आए वही 10 दफा कोविड के 300 केस प्रतिदिन के हिसाब से सामने आए है और 7 दिन ऐसे रहे है जब 400 से ज्यादा मरीज सामने आए है। वही इस माह की 22 तारीख को रिकार्ड 451 मरीज सामने आए है। वही सितंबर के 25 दिनों में 140 लोगो की जान घातक वायरस के कारण चली गई है याने 25 दिन में 140 लोगो की मौत हो चुकी है।
बिगड़े हालातों में 2 दिनों के स्वैच्छिक लॉक डाउन पर भी सवाल
इंदौर के बढ़ते कोरोना संक्रमण के चलते 3 दिन पहले अहिल्या चैंबर ऑफ कॉमर्स से जुड़े 47 व्यापारी संगठन शहर हित मे स्वैच्छिक लॉक डाउन के प्रशासन से मिले थे और निर्णय लिया गया था कि शनिवार और रविवार को 47 संगठन अपने मार्केट बन्द रखेंगे लेकिन अब इस निर्णय को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। मिली जानकारी के मुताबिक कई संगठनों का मानना है कि फैसला लेने के पहले व्यापारियों को विश्वास में लिया जाना था। वही व्यापरियों का विरोध इस बात को लेकर है राजनीतिक दल तो भीड़ जुटाकर अपने काम कर रहे है तो फिर मंदी के दौर में हम व्यापार क्यों बन्द रखे। इधर, प्रदेश की सबसे बड़ी सब्जी मंडी चोइथराम में आलू, प्याज और लहसुन मंडी अब से हर शनिवार और रविवार को कोरोना संक्रमण के बढ़ते असर के चलते बंद रहेगी वही फल एवं सब्जी मंडी केवल रविवार को बंद रहेगी।
फिलहाल, शहर हित में आगे आने पर एक बड़ा सवाल ये खड़ा हो रहा है कि आर्थिक राजधानी के व्यापारी ही क्यों पहल करे राजनितिक दलों को भी इसके बारे में सोचना चाहिए। दबी जुबां में तो सियासी गलियारों में ये चर्चा भी चल रही है कि यदि राजनीतिक उलटफेर न होता तो आज कम से कम इंदौर के हालात ये न होते।
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Pooja Khodani
खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते।
"कलम भी हूँ और कलमकार भी हूँ।
खबरों के छपने का आधार भी हूँ।।
मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूँ।
इसे बदलने की एक तलबगार भी हूँ।।
दिवानी ही नहीं हूँ, दिमागदार भी हूँ।
झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं।।"
(पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर)