भोपाल
एमपी में सपा का प्रभाव भले ही कम हो लेकिन कई सीटों पर बसपा का खासा असर है। पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा तीसरे मोर्चा पर रही थी। हालांकि बसपा एक भी सीट हथिया नही पाई लेकिन कांग्रेस का खेल बिगाड़ने में पूरी तरह कामयाब हुई थी। इस बार भी कुछ ऐसा ही होने वाला है। गठबंधन करने से इंकार कर चुकी बसपा अब सीधे कांग्रेस के साथ साथ बीजेपी को चुनौती देने के लिए तैयार है। प्रदेश में कई ऐसी सीटे है जहां बसपा का अच्छा प्रभाव है ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि 2014 की तरह इस बार भी बसपा दोनों का खेल बिगाड़ सकती है। चुंकी कई सीटों पर बसपा में वोटों का अंतर कम रहा था और कई सीटों पर बसपा दूसरे नंबर पर रही थी। खैर इस बार मुकाबला और भी दिलचस्प होने वाला है क्योंकि अब ना तो मोदी की लहर है और ही प्रदेश में बीजेपी की सरकार….।मुकाबला इस बार भी त्रिकोणीय होने के आसार है।
दरअसल, भले ही एमपी में यूपी जितना बसपा का असर ना हो लेकिन कई सीटों पर प्रभाव जरुर बना हुआ है।पिछले चुनाव की बात करे तो 2014 के चुनाव में भी बसपा ही एक मात्र ऐसा तीसरा दल थी, जिसका प्रत्याशी किसी सीट पर दूसरे पायदान पर रहा था। वहीं 2004 की बात करें तो मंडला सीट पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के अध्यक्ष हीरासिंह मरकाम दूसरे नंबर पर रहे थे। इस बार तीसरे मोर्चे के दलों में बसपा, सपा और गोंगपा के प्रत्याशी मैदान में हैं। इनमें से प्रदेश की पांच सीटें ऐसी हैं जहां तीसरे मोर्चे के दल प्रभाव डाल सकते हैं। खासकर बसपा का रीवा सहित विंध्य अंचल की सीटों और ग्वालियर-चंबल संभाग के अंतर्गत आने वाली संसदीय सीटों पर फोकस कर रही है। इधर, बालाघाट से सपा नेता कंकर मुंजारे भी बसपा के चिन्ह से मैदान में हैं। इस कारण यहां भी मुकाबला रोचक हो गया है।
इन सीटों पर पड़ सकता है खासा असर
मुरैना
इस सीट से पिछले चुनाव में बसपा के वृंदावन सिकरवार मैदान में थे। उन्होंने भाजपा के वरिष्ठ नेता अनूप मिश्रा के खिलाफ चुनाव लड़ा था और वे दूसरे नंबर पर थे। हालांकि प्रदेश भर में बसपा का वोट शेयर मात्र 3.8 फीसदी ही था। रीवा, सतना संसदीय क्षेत्र में बसपा प्रत्याशियों ने दोनों दलों के प्रत्याशियों को कड़ी टक्कर दी थी। इस बार मुरैना से भाजपा ने केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को टिकट दिया है। वही कांग्रेस ने दिग्गज नेता रामनिवास रावत को दावेदार बनाया है। तोमर के उतरने से समीकरण बदले हैं, लेकिन कांग्रेस के लिए पहले बसपा से निपटना बड़ी चुनौती है। फिर भाजपा से मुकाबले के हालत बनेंगे।
रीवा
विंध्य की इस सीट से 2009 में बसपा के देवराज सिंह ने कांग्रेस के सुंदरलाल तिवारी को करीब 1 लाख 68 हजार मतों से शिकस्त दी थी। बसपा के खाते में एकमात्र यही सीट गई थी। वहीं, विदिशा लोकसभा सीट पर सपा के चौधरी मुनव्वर सलीम दूसरे पायदान पर रहे थे। यहां से भाजपा की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज ने चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में बसपा का वोटिंग शेयर साढ़े पांच प्रतिशत से अधिक था।इस बार कांग्रेस ने जहां सुंदरलाल तिवारी के निधन के बाद उनके बेटे सिद्धार्थ तिवारी को टिकट दिया है, जबकि भाजपा ने वापस जनार्दन पर भरोसा जताया है। कांग्रेस के लिए यहां बसपा से निपटना भी बड़ी चुनौती है।
मंडला
इस सीट पर मंडला से गाेंडवाना गणतंत्र पार्टी के वरिष्ठ नेता हीरासिंह मरकाम दूसरे नंबर पर रहे थे। भाजपा के फग्गन सिंह कुलस्ते यहां से करीब पौने दो लाख मतों से जीते थे। लेकिन बसपा प्रत्याशी किसी भी सीट से दूसरे पायदान पर नहीं थे। हालांकि उसका वोट शेयर 4.75 प्रतिशत रहा था।इस बार बीजेपी ने दोबारा वर्तमान सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते को उम्मीदवार बनाया है वही कांग्रेस ने कमल मरावी को मैदान में उतरा है।मरावी का यहां विरोध है, ऐसे में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी एक बार फिर बड़ी टक्कर दे सकती है।
ग्वालियर
2014 में कांग्रेस के सारे समीकरण बसपा ने बिगाड़ दिए थे। यहां महज 29700 वोट से कांग्रेस प्रत्याशी अशोक सिंह की हार भाजपा प्रत्याशी नरेंद्र सिंह तोमर से हुई थी। जबकि, बसपा प्रत्याशी आलोक शर्मा इससे दोगुना से भी ज्यादा 68196 वोट ले गए थे। तोमर को 442796 व सिंह को 413096 वोट मिले थे। इस बार ग्वालियर पर दोनों ओर से टिकट रुका है। भाजपा के तोमर सीट बदलकर मुरैना पहुंच गए हैं। यहां कांग्रेस की स्थिति विधानसभा चुनाव के बाद बेहतर है, लेकिन बसपा से भी निपटने की चुनौती बरकरार है।इस बार कांग्रेस ने अशोक सिंह को उम्मीदवार बनाया है तो बीजेपी ने विवेक शेजवलकर पर भरोसा जताया है।
सतना
2014 में यह ऐसी सीट थी, जहां कांग्रेस सबसे कम वोट से हारी थी। कांग्रेस प्रत्याशी अजय सिंह को 8688 वोट से भाजपा प्रत्याशी गणेश सिंह ने हराया था, जबकि बसपा प्रत्याशी धर्मेंद्र सिंह तिवारी इससे कई गुना ज्यादा 124602 वोट ले गए थे। गणेश को 375288 व अजय को 366600 वोट मिले थे। कांग्रेस से जहां राजाराम त्रिपाठी मैदान में है वही भाजपा ने वापस गणेश पर भरोसा जताया है। इस सीट पर भी जीत के लिए कांग्रेस को पहले बसपा को पटकनी देना अनिवार्य है।
सीधी
2014 के चुनाव में बीजेपी की रीति पाठक ने कांग्रेस के इंद्रजीत कुमार को हराया था। रीति पाठक को 4,75,678 वोट मिले थे तो वहीं इंद्रजीत कुमार को 3,67,632 वोट मिले थे। वहीं बसपा तीसरे स्थान पर रही थी। रीति पाठक ने इस चुनाव में 1,08,046 वोटों से जीत हासिल की थी। इस चुनाव में रीति पाठक को 48.08 फीसदी वोट मिले थे, इंद्रजीत को 37.16 फीसदी वोट और बसपा उम्मीदवार को 3.98 फीसदी वोट मिले थे। कांग्रेस ने जहां पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह को मैदान में उतारा है वही बीजेपी ने रीती पर फिर भरोसा जताया है।
यूपी से सटे इन इलाकों पर बड़ा असर
प्रदेश की संसदीय सीटों की जो विधानसभा सीटें उत्तर प्रदेश से सटी हैं, वहां का गणित भाजपा-कांग्रेस के सारे समीकरणों को प्रभावित करता है। उत्तर प्रदेश से सटे इलाकों में बसपा-सपा का बड़ा वोट बैंक है। लोकसभा चुनाव के नतीजे देखें तो 2009 में बसपा ने एक सीट जीती थी, जबकि 1996 में दो और 1991 में भी एक सीट बसपा के पास थी, लेकिन हर चुनाव में आधा दर्जन सीटें बसपा और सपा प्रभावित करती आई हैं, जिनके कारण भाजपा-कांग्रेस की जीत-हार के समीकरण बदल जाते हैं।