कमलनाथ सरकार के सत्ता से बेदखल हो जाने के बाद नई सरकार के गठन और उपचुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं। आने वाले 6 महीनों में प्रदेश की 25 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव होना है। इनमें 22 सीटें वो हैं जो ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद उनके समर्थन में कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे के बाद खाली हुई हैं। दो सीटें विधायक के निधन से खाली हैं जबकि एक सीट पर अभी असमंजस बना हुआ है, पहले खबर आई थी कि भाजपा विधायक कौल ने इस्तीफा दे दिया है लेकिन फिर बाद में कौल ने इस्तीफे से इनकार कर दिया।
बहरहाल यहाँ सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा वे 22 सीटें हैं जहाँ के कांग्रेस विधायकों ने सिंधिया के समर्थन में कांग्रेस छोड़ी और विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। अब बड़ा सवाल ये है कि इन सभी सीटों पर भाजपा टिकट किसे देगी। हालांकि इतना तो तय है कि जो सिंधिया के साथ आये उन्हें ही इन विधानसभा सीटों पर टिकट मिलेगा, लेकिन क्या भाजपा से पिछला चुनाव लड़े नेता इसे लिए तैयार होंगे? क्या वे इस बात का विरोध नहीं करेंगे? इन सभी चुनौतियों का भाजपा को सामना करना होगा और अपने नेताओं को इसके लिए तैयार करना होगा। साथ ही अपने कार्यकर्ता को तैयार करना होगा कि वे कांग्रेस से आये नेता को स्वीकार करें और उसके लिए प्रचार कर उस जीत दिलाएं।
22 में से 15 सिंधिया के गढ़ ग्वालियर चंबल के
जिन 22 विधायकों ने सिंधिया के समर्थन में इस्तीफा दिया है उनमें से 15 ग्वालियर चंबल अंचल के हैं और इसमें डबरा से विधायक चुनी गई और कमलनाथ सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री रही इमरती देवी ने 57446 वोटों से सबसे बड़ी जीत दर्ज की थी। सभी 22 सीटों पर जीत हार के वोट प्रतिशत पर नजर डालेंगे तो ये महज 15 प्रतिशत के आसपास है इनमें से 11 सीटों पर ये अंतर घटकर 10 प्रतिशत से भी कम रहा। खास बात ये है कि 22 में से 20 सीटों पर भाजपा दूसरे नंबर पर रही यानी उस विधानसभा में भाजपा के नेता को भी बड़ा जनसमर्थन हासिल है। इसको मैनेज करना भी आसान नहीं होगा।
ग्वालियर विधानसभा और ग्वालियर पूर्व विधानसभा होगी चुनौती
ग्वालियर जिले की बात करें तो यहाँ से पांच सीटें पिछले चुनाव में कांग्रेस ने जीती थी जबकि एक पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। लेकिन सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद डबरा विधायक एवं महिला एवं बाल विकास मंत्री रही इमरती देवी, ग्वालियर विधायक एवं खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री रहे प्रद्युम्न सिंह तोमर और ग्वालियर पूर्व विधायक मुन्नालाल गोयल ने सिंधिया का साथ दिया और पार्टी छोड़ दी, जबकि भितरवार विधायक एवं पशुपालन मंत्री लाखन सिंह और ग्वालियर दक्षिण विधायक प्रवीण पाठक ने कांग्रेस में आस्था जताई। यहाँ गौरतलब है कि ग्वालियर विधानसभा से शिवराज सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री रहे जयभान सिंह पवैया का मुकाबला पूर्व विधायक प्रद्युम्न सिंह तोमर से हुआ जिसमें 21044 वोटों से कांग्रेस के प्रद्युम्न सिंह तोमर जीते। इस बार भी उपचुनाव में पवैया दावेदर होंगे लेकिन टिकट प्रद्युम्न को मिलेगा तो देखना होगा कि पवैया इसको कैसे लेते हैं। इस सीट पर भितरघात के आरोप भी लगे थे। पवैया ने बिना नाम लिया भाजपा के वरिष्ठ नेताओं पर निशान साधा था। ग्वालियर पूर्व विधानसभा सीट की बात करें तो यहाँ से भाजपा ने पूर्व मंत्री माया सिंह का टिकट काटकर दो बार के पार्षद सतीश सिंह सिकरवार को उम्मीदवार बनाया था जबकि कांग्रेस ने पहली बार मुन्नालाल गोयल जो टिकट दिया था। कड़ी टक्कर के बीच कांग्रेस के मुन्नालाल ने 17819 वोटों से सतीश सिकरवार को हरा दिया। हार के बाद भाजपा उम्मीदवार सतीश सिकरवार ने भितरघात के आरोप पार्टी के बड़े नेताओं पर लगाए थे। अब इन सीटों पर जब भाजपा कांग्रेस से आये नेताओं को टिकट देगी तो अपने नेताओं को संभाल कर रखना होगा। उधर डबरा में विरोध के सुर उठने के चांस का हैं क्योंकि यहाँ से इमरती देवी ने बहुत बड़े अंतर 54446 वोटों से भाजपा के कप्तान सिंह को हराया था।
22 में से 10 ऐसे जो पहली बार विधानसभा पहुंचे थे
2018 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने वाले सिंधिया समर्थकों 22 पूर्व विधायकों में से 10 ऐसे हैं जो पहली बार विधानसभा पहुंचे थे इनमें रघुराज कंसाना, कमलेश जतव्, मुन्नालाल गोयल, रक्षा सरोनिया, मनोज चौधरी, जजपाल जज्जी, सुरेश धाकड़, ओपीइस भदौरिया, गिरिराज दंडोटिया और जसवंत जाटव शामिल हैं । जबकि बिसाहू लाल साहू पांचवी बार विधायक चुने गए थे। इसे अलावा महेंद्र सिंह सिसोदिया, रणवीर जाटव, हरदीप सिंह डंग, ब्रजेंद्र सिंह, प्रद्युम्न सिंह तोमर, इमरती देवी, प्रभुराम चौधरी, गोविंद सिंह राजपूत, राजवर्धन सिंह, तुलसी सिलावट और एन्दल सिंह कंसाना में से कोई दो बार, कोई तीन बार और कोई चार बार का विधायक है। लेकिन इन सभी ने सिंधिया के समर्थन में कांग्रेस छोड़ दी और उनके ही हाथों में अपना राजनैतिक भविष्य सौंप दिया है।