भोपाल। मध्य प्रदेश में किसान कर्ज माफी को लेकर एक बार फिर कमलनाथ सरकार सक्रिय हो गई है। पहले चरण में 50 हज़ार से कम का लोन माफ करने के बाद अब राज्य सरकार आगे की रणनीति तय करेगी। किसान कर्ज माफी के लिए दूसरे चरण में कितनी राशि नियमित करना है। इसके लिए मुख्यमंत्री कमलनाथ बुधवार को अहम बैठक लेंगे। इसमें वित्त, कृषि और सहकारिता विभाग के अफसर शामिल होंगे।
लोकसभा चुनाव से पहलेे तक सरकार ने दावा किया था कि 22 लाख किसानों का कर्ज माफी किया जा चुका है। इनमें वह किसान शामिल किए गए थे जिन पर 50 हज़ार तक का कर्ज था। वहीं, ऐसे भी किसान थे जो डिफाल्टर थे और उन पर दो लाख तक कर्ज था। प्रदेश सरकार ने जय किसान फसल ऋण मुक्ति योजना के तहत 31 मार्च 2018 तक किसानों के दो लाख रुपए तक के कर्ज माफ करने का फैसला किया है। पहले चरण में 50 हजार रुपए तक के नियमित कर्ज और दो लाख रुपए के कालातीत कर्ज को माफ किया गया है।
आंकड़ों को लेकर विपक्ष ने घेरा
कमलनाथ सरकार यह दावा कर रही है कि उसने अभी तक 22 लाख किसानों का कर्ज माफ किया है। वहीं, सरकार के इन दावों को विपक्षी पार्टी बीजेपी पूरी तरह से खारिज कर रही है। उसका आरोप है कि किसानों का कर्ज अभी तक सिर्फ कागजों पर ही माफ हुआ है। बैंकों में इसकी राशि नहीं पहुंची है। जिस कारण किसानों को नो ड्यूज प्रमाण पत्र बैंक द्वारा नहीं दिया गया है इसलिए प्रदेश के किसान परेशान हैं और उन्हें नया कर्ज नहीं मिल रहा है।
सरकार ने अब तक जारी नहीं की जानकारी
कमलनाथ सरकार किसान कर्ज माफी के आंकड़े तो पेश कर रही है। लेकिन इस बात की जानकारी छिपा रही है कि उसने बैंकों में अब तक कितना फंड जारी किया है। अगर बैंक में रकम नहीं पहुंची है तो फिर किसानों का कर्ज कैसे माफ हुआ। इन सवालों सरकार चुप्पी साधे हुए है। इस हिसाब से सरकार को सहकारी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण विकास बैंक और राष्ट्रीयकृत बैंकों को कर्ज माफी की राशि देनी है। 2018-19 के अनुपूरक और वर्ष 2019-20 के लेखानुदान में कुल छह हजार करोड़ रुपए का प्रावधान कर्जमाफी के लिए रखा गया है।
सूत्रों का कहना है कि कर्जमाफी के लिए सरकार ने प्राथमिकता में जो क्रम तय किया है, उसमें सबसे पहले सहकारी बैंक, फिर क्षेत्रीय ग्रामीण विकास बैंक और इसके बाद राष्ट्रीयकृत बैंकों का कर्जमाफ होना है। कालातीत (एनपीए) कर्ज की लगभग आधी राशि बैंक माफ कर र��े हैं। बाकी राशि राज्य सरकार बैंकों को देगी। कुछ हिस्सा बैंकों को भी भुगतना है।