भोपाल। लोकसभा में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस की पूरी नजर झाबुआ उपचुनाव पर है। कांग्रेस हर हाल में इस सीट को हथियाने की फिराक है। अगर कांग्रेस इस सीट पर जीत हासिल करने में कामयाब हो जाती है तो वह मील का पत्थर साबित होगी। खबर है कि कांग्रेस छिंदवाड़ा मॉडल पर यह उपचुनाव लड़ेगी।इसके लिए सीएम कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में की गई चुनावी तैयारियों को झाबुआ में भी अप्लाई करने और हर बूथ पर 2 से 3 कार्यकर्ता और 10 से 12 बूथ पर क्षेत्रीय प्रभारी नियुक्ति करने को कहा है।वही सीएम ने दावेदारी को लेकर उपजे विवाद को थामने के लिए सभी को एकजुट होकर उपचुनाव में जीत के लिए जुटने को कहा है।
दरअसल, बुधवार को सीएम कमलनाथ ने कांग्रेस विधायक, जिला अध्यक्ष और प्रभारी मंत्री के साथ उपचुनाव के संबंध मे बैठक की। बैठक में कमलनाथ ने सड़क निर्माण, स्कूलों के उन्नयन और पानी की समस्या को दूर करने के लिए प्रस्ताव देने को कहा है। माना जा रहा है कि इससे अनुकूल माहौल बनाने में मदद मिलेगी। इसी कड़ी में घोषणाएं भी की जा रही है। साथ ही कमलनाथ ने बैठक में सभी से राय जाननी चाही कि किसको चुनाव लडवाया जाए और कौन जीत सकता है? जीतने के लिए क्या मदद की जरूरत है? विधानसभा व लोकसभा चुनाव के हार की काली छाया से यह चुनाव दूर रहेगा? इस दौरान विधायक अपनी-अपनी राय मुख्यमंत्री के सामने रखते रहे। वहीं बैठक में शामिल झाबुआ जिले के पदाधिकारी और जनप्रतिनिधियों ने प्रत्याशी चयन का फैसला सीएम कमलनाथ पर छोड़ दिया है।वही सीएम ने दावेदारी को लेकर उपजे विवाद को थामने के लिए सभी को एकजुट होकर उपचुनाव में जीत के लिए जुटने को कहा है।
माना जा रहा है कि कमलनाथ के झाबुआ दौरे से यह भी साफ हो गया है कि 1991 व 2015 अब रिपीट होने वाला है। उन दोनों समय में भाजपा ने अपनी सत्ता का भरपूर उपयोग किया था। अब बारी कांग्रेस की है। इस बार कांग्रेस झाबुआ के चुनाव में अपनी पूरी सरकार को झोंकती हुई दिखाई दे रही है। यह तय है कि रानापुर, बोरी, पिटोल, कुंदनपुर, अंतरवेलिया, कल्याणपुरा व झाबुआ में केबिनेट मंत्री इस बार डेरा डालकर जमे रहेंगे।
बीजेपी कांग्रेस के लिए चुनाव जीतना एक चुनौती
झाबुआ-रतलाम लोकसभा सीट राज्य में कांग्रेस का तीसरा गढ़ मानी जाती है। लेकिन 2014 के चुनाव में बीजेपी के दिलीप सिंह भूरिया ने कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया को हरा दिया। दिलीप सिंह के निधन के बाद उपचुनाव हुए तो कांतिलाल फिर सांसद बन गए। वहीं विधानसभा चुनाव मे झाबुआ सीट से जीएस डामोर ने कांतिलाल भूरिया के बेटे विक्रांत भूरिया को हराया और जीत हासिल की। लेकिन सांसद बनने के बाद उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया। ऐसे में अब फिर से झाबुआ विधानसभा जीतना दोनों के लिए चुनौती बना हुआ है।
कांग्रेस से ये दोनों प्रबल दावेदार
इस सीट से कांतिलाल भूरिया और जेवियर मेड़ा दोनों ही प्रबल दावेदार हैं। दोनों ने अपनी दावेदारी सीएम के सामने पेश की है। भूरिया का मानना है कि वह एक बार फिर जीत दिला सकते है। वही मेड़ा का कहना है कि कांतिलाल भूरिया के खिलाफ माहौल है और जनता मेरे साथ है।हाल हा में विधानसभा-लोकसभा में हार को बाद जेवियर मेड़ा की दावेदारी इसलिए मजबूत मानी जा रही है क्योंकि, विधानसभा चुनाव में जेवियर मेड़ा को झाबुआ से 30 हजार वोट मिले थे और कांग्रेस उम्मीदवार विक्रांत भूरिया की हार हुई थी। कांग्रेस को इस बात की भी आशंका है कि यदि उसने देर की तो जेवियर मेड़ा को भाजपा भी अपने में शामिल कर टिकट दे सकती है। हालांकि, जेवियर मेड़ा कहते हैं कि उनके पास ऑफर तो आ रहे हैं, लेकिन वे कांग्रेस के साथ हैं। ऐसे में दोनों को संभालना पार्टी के लिए चुनौती साबित हो सकता है।पार्टी को चिंता यह भी है कि यदि मेड़ा को टिकट नहीं दिया जाता तो वे विधानसभा में जिस तरह बागी होकर चुनाव लड़े थे, उपचुनाव में भी लड़े तो राजनीतिक समीकरण बिगड़ सकते हैं।