अलविदा साशा : मादा चीता ने बीमारी के बाद दम तोड़ा, प्रोजेक्ट चीता को बड़ा झटका

“कितना है बद-नसीब ‘ज़फ़र’ दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में”

ये शेर एक चीते के लिए कितना माक़ूल साबित हुआ है आज। रंगून की जेल में कैद बादशाह बहादुर शाह जफर ने अपने वतन की याद में ये शेर लिखा था। अपनी ज़मीन से दूर होने का दर्द सहना बहुत मुश्किल होता है। फिर चाहे वो इंसान हो या जानवर..सभी के लिए ज़मीन से कटना पीड़ादायक है। इंसान तो फिर भी अपनी तकलीफ को बोलकर ज़ाहिर कर सकता है, लेकिन बेजुबान जानवर क्या करें। वो तो बता भी नहीं सकते कि उन्हें क्या तकलीफ है..उन्हें तो बस इंसान के रहमो-करम पर ही रहना होता है। सोमवार को ये बुरी खबर आई कि विदेश से आई मादा चीता साशा की मौत हो गई है।


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।